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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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ऐसे का परलो लिबार हित हेतु हम, उद्यम कियो है नहि बान अभिमान की। ज्ञान अंश चाखा भई ऐसी अभिलाषा अब,
करू जोरि भाषा जिन पारस पुरान की। कवि का उद्देश्य पार्श्वनाथ के चरित्र के बहाने पार्श्वनाथ की भक्ति करना
“प्रभु चरित्र मिस किमपि यह कीनों प्रभु गुनगान । भक्ति के वश होकर ही उसने यह ग्रन्थ बनाया है -
"मैं अब बरनो भक्तिवश, शक्ति मूल मुझ नाहिं ॥" प्रमाद या आलस्य को दूर करने के उद्देश्य से भी कवि पार्श्वनाथ का गुणगान करता है अर्थात् पार्श्वपुराण की रचना करता है --
“परमाद चोर टालन निमित्त, करौ पार्श्वजिन गुण कश्चन ।।" कवि ने धर्म भावना के कारण भी इस ग्रन्थ की रचना की है---
___धर्मभावना हेतु, किमपि भाषा यह कीनी।
पार्श्वनाथ और कमठ के अनेक जन्मों की कथा कहकर कवि क्षमा का फल और वैर का फल भी दिखाना चाहता है :
"छिमा भाव फल पास जिन, कमठ बैर फल जान ।
दोनों दशा विलोक के, जो हित सौ उर जान ।। पहले तो कवि क्षमा और वैर का फल बताकर कहता है कि उन दोनों में जो हितकारी हो उसे ग्रहण करें । परन्तु बाद में स्वयं ही निष्कर्ष के रूप में हितकारी भाव क्षमा एवं मैत्री धारण करने की प्रेरणा भी देता है :
“जीव जाति जावंत, सब सो मैत्री भाव करि ।
याको यह सिद्धांत, बैर विरोध न कीजिये ।।" 1. पार्श्वपुराण पीठिका पृष्ठ9 2. पार्श्वपुराण अधिकार 9 पृष्ठ 95 3. पावपुराण पृष्ठ 3
4. पार्श्वपुराण पीठिका पृष्ठ 1 5 से 7 तक पार्श्वपुराण अधिकार 9 पृष्ठ 95