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एक समालोचनात्मक अध्ययन
239 मोक्ष में निवास करने को सब प्रकार से उत्तम बतलाकर कवि ने मोक्ष के कारणस्वरूप भावों को ही ग्रहण करने योग्य बतलाया है -
"ताते जे शिवकारन भाव। तेई गहन जोग मन लाव ॥
मोक्ष एवं नोक्ष के कारणों से विपरीत संसार एवं संसार के कारणों को त्यागने योग्य बतलाना भी कवि का उद्देश्य है -
"यह जगवास महादुखरूप । तातै भ्रमत दुखी चिद्रूप। जिनभावन उपजै संसार । ते सब त्याग जोग निरधार ॥
इस संसार में कोई भी सुखी नहीं है । निर्धन धन के बिना दुःखी है तो धनवान तृष्णा से दुःखी है -
"दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णा यश धनवान । कबहूँ न सुख संसार में, सब जग देखो छान ।।
इस प्रकार संसार को दुखरूप एवं असार बतलाकर कवि का उद्देश्य मानव को मोक्षसुख की प्राप्ति के लिए उत्साहित करते हुए मोक्ष एवं मोक्षमार्ग में लगाना है।
दूसरे शब्दों में मोक्ष सुख को उपादेय तथा संसार, शरीर भोगजनित इन्द्रिय सुखों को हेय बतलाकर कवि ने विश्वव्यापी चिरन्तन समस्या का समाधान भारतीय महर्षियों और मनीषियों की परम्परा में प्रस्तुत किया है।
भूधरदास ने "पाशवपुराण" के महान कथानक के आधारफलक पर विश्व की उस महान समस्या का चिरन्तन समाधान प्रस्तुत किया है, जो सामायिक होकर भी शाश्वत है। यह प्रत्येक युग की समस्या का पृथक् पृथक् समाधान होकर भी कालिक समस्याओं का एक मात्र शाश्वत समाधान है, क्योंकि वास्तव में प्रत्येक युग तथा प्रत्येक प्राणी की अलग-अलग समस्याएँ नहीं, अपितु सभी युगों और सभी प्राणियों की एक मात्र समस्या है - मोह-राग-द्वेषात्मक
1. पावपुराण- कलकत्ता, अधिकार 9 पृष्ठ 77 2. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 9 पृष्ठ 77 3. पार्श्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार 4 पृष्ठ 30