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________________ 238 महाकवि भूधरदास : नमो देव अरहन्त सकल तत्वारथभासी। नमो सिद्ध भगवान, ज्ञानमूरति अविनाशी ।। नमो साधु निग्रन्थ दुविधि परिग्रह परित्यागी॥ यथाजात जिनलिंग धारि, वन बसे विरागी॥ • बन्दों जिन भाषित घरम, देय सर्व सुख सम्पदा ॥ ये सार चार तिहुलोक में, करो क्षेम मंगल सदा ।।' इस प्रकार पार्श्वपुराण में अंगीरस “शान्त" के अतिरिक्त अंगरस के रूप में श्रृंगार, हास्य, करूण, वीर, रौद्र, भयानक, वीभत्स, अद्भुत, वात्सल्य और भक्ति रस यथावश्यक रूप से विद्यमान हैं। (इ) पार्श्वपुराण की रचना का उद्देश्य महाकाव्य का कोई ने कोई प्रमुख लक्ष्य या उद्देश्य होता है जो "कार्य" कहलाता है। इसे दृष्टि में रखकर ही कवि कथानक की योजना करता है। सम्पूर्ण कथानक का केन्द्र यही कार्य होता है और इसी के कारण काव्य में एकरूपता आ जाती है। ___ “पावपुराण" की रचना भी सोद्देश्य की गई है। इसकी रचना के पीछे कवि के एकाधिक उद्देश्य दृष्टिगत होते हैं । “पार्श्वपुराण" की रचना का प्रमुख उद्देश्य जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ का चरित्र चित्रण करना है। पार्श्वनाथ के चरित्र चित्रण के साथ -साथ जैनधर्म के सिद्धान्तों का परिचय कराना' तथा धर्मोपदेश द्वारा सन्मार्ग दिखाना - पार्श्वपुराण के गौण उद्देश्य हैं। प्राचीन आचार्यों के अनुसार महाकाव्य का उद्देश्य पुरुषार्थ चतुष्टय में से किसी एक की प्राप्ति में सहायक होना है। इस दृष्टि से पार्श्वपुराण का उद्देश्य धर्म एवं मोक्ष पुरुषार्थ की प्राप्ति में सहायक होना है। कवि सभी प्राणियों को संसार के विविध दुःखों से छुड़ाकर उन्हें मुक्तिमार्ग दिखाकर मुक्ति दिलाना चाहता है। इसलिए कवि ने मोक्ष को सबसे उत्तम कहा है - "सब विधि उत्तम मोख निवास। आवागमन मिटै जिहिं वास ।।" 1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 9 अन्तिम प्रशस्ति पृष्ठ 96 2. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 9 सम्पूर्ण अधिकार 3. पार्श्वपुराण- कलकचा, अधिकार 9 पृष्ठ 77
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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