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महाकवि भूधरदास : पुन: स्वर्गलोक की प्राप्ति होने पर राजा आनन्द का जीव विस्मित होता हैविसमयवंत होय मन ताम । कहैं कौन आयो किस धाम ।'
तीर्थकर होने से पार्श्वनाथ के जन्म के छह माह पूर्व से देवों द्वारा अनुपम पाँच आश्चर्य होते हैं, जिनमें अद्भुत रस होता है -
देवन किये छह मास लों, पंचाचरज अनूप।
देखि देखि परजा भई आनन्द अमरजरूप । पार्श्वनाथ का जन्म होने पर देवों द्वारा जन्म महोत्सव मनाया जाता है । इस अवसर पर इन्द्र आश्चर्यकारक ताण्डव नृत्य करता है - .
अद्भुत ताण्डव रस तिहिं वार । दरसावै जन अचरजकार।"
वात्सल्य रस - बालक पार्श्वनाथ द्वारा की गई विविध बालक्रीड़ाओं से वात्सल्य रस अभिव्यक्त होता है -
अब जिन बालचन्द्रमा बढे ।कोमल हांस किरन मुख कहे। छिन छिन तात मात मन हरै। सुख समुद्र दिन दिन विस्तरे ।। कवहीं पुहुमीपै जिनराय। कंपित चरन ठवें इहि भाय ।। सहै कि ना धरती मुझ भार। शंके उर उपमा यह धार ।। कबहीं स्वामी उझाकि उठि चलें। विकसित मुख सब दुखको दलें ।। बांधे मुठी अटपटे पाय । कैसे वह छबि वरनी जाय । कहीं रतन भीत में रूप। झलके ताहि गहैं जगभूप । माता सों माने अति प्रीत। बाल अवस्था की यह रीति॥ यो जिन बालक लीला करे। त्रिभुवन जनमनमानिक हरै॥'
भक्ति रस - कवि द्वारा अपने इष्ट देव के प्रति रतिभाव होने से कई स्थानों पर भक्तिरस की सरिता प्रवाहित हुई है । ग्रन्थ के प्रारम्भ में ही मंगल चरण के रूप में कवि पार्श्वनाथ की स्तुति करता है -
1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 3 पृष्ठ 22 3.वही अधिकार 5, पृष्ठ 57
2. वही अधिकार 5, पृष्ठ 46 4. वही अधिकार 7, पृष्ठ 59