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एक समालोचनात्मक अध्ययन
235 तहों भयानक नारकी, धरि विक्रिया भेष ।
बाघ सिंह अहि रूप सों, दारै देह विशेष ॥' "संवर" नामक ज्योतिषी देव द्वारा पार्श्वनाथ पर उपसर्ग किये जाने पर भयानक रस निम्नलिखित पंक्तियों में व्यक्त हुआ है .
आरम्भ्यो उपसर्ग महान । कायर देखि भजे भय मान ॥ अंधकार छायो चहुँ ओर, गरज गरज वरचे घनघोर ।। झरै नीर मुसलोपम धार । बक्र वीज झलकै भयकार ॥ २
वीभत्स रस - कमठ का जीव अपने पापकों के फलस्वरूप कई बार नरक प्राप्त करता है। कवि ने बुरे कर्मों से प्राप्त नरक और नारकी जीवन का बड़ा भंयकर और वीभत्स चित्रण किया है -
जन्य थान सब नरक में, अंध अधोमुख जौन।
घंटाकार घिनावनी, दुसह खास दुख मौन ॥' इसी सन्दर्भ में कवि-आगे कहता है -
श्वान श्याल मंजार की, पड़ी कलेवर रास। मास वसा अरू रूधिर को, कादो जहाँ कयास ।। ठाम ठाम असहावने, सेमल तरूवर भर।
पैने दुख देने विकद, कटक कलित करूर ॥ * अद्भुत रस - पार्श्वपुराण में अद्भुत रस कई स्थानों पर दृष्टिगत होता है। जब पार्श्वनाथ अपने पूर्व जन्म में चक्रवर्ती से अहमिन्द्र देव हो जाते हैं, तब देवलोक की सम्पदा देखकर वे आश्चर्य में पड़ जाते हैं -
"देखि दिशि अति विस्मितरूप। महा मनोग विमान अनूप ॥
अहमिन्द्र के पश्चात् राजा आनन्द का जन्म प्राप्तकर वे सूर्यविमान में विराजमान आश्चर्यरूप जिनबिम्बों को नमस्कार करते हैं -
रवि विमान मनि कंचनमई । निमायो अद्भुत छवि छई ॥ जैनभवनकरि मंडित सोय। देखत जनमन अचरज होय ।।
1, पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 3 पृष्ठ 22 -23 3.वही अधिकार 3, पृष्ठ 20 5. वही अधिकार 3, पृष्ठ 20
2, वही अधिकार 8, पृष्ठ 67 4. वहीं अधिकार 3, पृष्ठ 24 6. वही अधिकार 4, पृष्ठ 29