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________________ 230 महाकवि भूधरदास : समझै पुरुष और की और, त्यों ही जगजीवन की दौर । पुत्र कला भिरबान लेह म्यारष्ट लगे सगे सब येह। सुपन सरूप सकल संभोग, निजहितहेत बिलम्ब न जोग॥" एक जन्म में पार्श्वनाथ बज्रवीर्य राजा के बज्रनाभि पुत्र होते हैं । चक्रवर्ती बनकर वे गुरूपदेश से विरक्त हो जाते हैं - ___गुरू उपदेश्यों धर्म सिरोमनि सुनि राजा वैरागे। राज रमा वनितादिक जे रस ते रस वैरस लागे ॥2 संसार, शरीर एवं भोगों के स्वरूप का चितवन करते हुए वे कहते हैं - "मैं चक्री पद पाय निरन्तर, भोगे भोगे घनेरे। तो भी तनिक भये नहि पूरन, भोग मनोरथ मेरे ।। राज समाज महा अधकारन, बैर बढ़ावनहारा । वेश्यासम लछमी अति चंचल, याको कौन पत्यारा॥ मोह महारिपु खैर विचारो, जग जिग संकट डाले। घर कारागृह वनिता बेड़ी, परिजन जन रखवाले ।। सम्यग्दर्शन ज्ञान चरन तप, ये जियके हितकारी। ये ही सार असार और सब यह चक्री चितधारी ॥ एक जन्म में पार्श्वनाथ आनन्द राजा के रूप में उत्पन्न होते हैं तथा अपने मस्तक पर श्वेत केश देखकर विरक्त हो जाते हैं - "सो लखि सेत बाल भूपाल, भोग उदास भये तत्काल । जगत रीति सब अथिर असार, चितै चित में मोह निवार । विरक्त होकर बारह भावनाओं का चितवन करते हुए मुनि दीक्षा ले लेते हैं। पार्श्वनाथ के जन्म में आयोध्या के राजा जयसेन के दूत का संदेश सुनकर पार्श्वनाथ विरक्त होकर सोचते हैं - 1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 2 पृष्ठ 9 2. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 3 पृष्ठ 17 3. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 3 पृष्ठ 18 4. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 3 पृष्ठ 19 5. पार्श्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार 4 पृष्ठ 29 6. पार्श्वपुराण-- कलकत्ता, अधिकार 4 पृष्ठ 30
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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