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एक समालोचनात्मक अध्ययन
रामचन्द्र गुणचन्द ने शान्त रस की उत्पत्ति का विषय बताते हुए कहा है
" जन्म मरण से युक्त संसार से भय तथा वैराग्य से जीव अजीव, पुण्य पाप आदि तत्त्वों तथा मोक्ष के प्रतिपादक शास्त्रों के विमर्शन से शान्त रस की उत्पत्ति होती है।"
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इस प्रकार संसार, शरीर, भोगों से वैराग्य तथा संसारभीरूता शान्तरस के विभव, मोक्ष की चिन्ता अनुभाव और निर्वेद, भीति, धृति, स्मृति इसके संचारीभाव कहे जा सकते हैं ।
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शान्त रस के उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि " पार्श्वपुराण" में शान्त रस के उपर्युक्त स्थायीभाव, विभाव, अनुभाव, संचारीभाव आदि सभी पूर्णरूपेण दृष्टिगोचर होते हैं। इसलिए " पार्श्वपुराण" का अंगीरस " शान्त रस" ही स्पष्टतः सिद्ध होता है ।
पार्श्वपुराण में शान्तरस सर्वत्र दिखाई देता है। कुछ उदाहरण इस प्रकार है -
एक दिन मरुभूति और कमठ के पिता विश्वभूति मंत्री को सफेद बाल देखकर हो वैराग्य हो जाता है -
" एक दिना भूपति मंत्रीश । स्वेत बाल देख निज शीश ॥ उपज्यो विप्र हिये वैराग । जान्यो सब जग अथिर सुहाग ॥ *
राजा अरविन्द को बादल की सुन्दर रचना मिटती हुई देखकर वैराग्य हो जाता है और वे संसार को अनित्य, असार अनित्य एवं दुःखमय मानने लगते हैं -
" तब भूपति उर करै विचार,
जगतरीति सब अथिर असार । तन धनराज संपदा सबै योंही विनशि जायगी अबै ॥ मोह भत्त प्रानी हठ गहुँ, अधिर वस्तु को थिर सरद है । जो पर रूप पदारथ जाति, ते अपने माने दिनराति || भोगभाव सब दुख के हेतु, तिनही को जान सुख खेत । ज्यों माचन कोदों परभाव, जाय जधारथ दृष्टि स्वभाव ॥
1. "हिन्दी साहित्य दर्पण 3.20 तथा वृत्ति रामचन्द्र गुणचन्द्र पृष्ठ 31 2. पार्श्वपुराण कलकत्ता, अधिकार 1 पृष्ठ 5