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________________ 228 महाकवि भूघरदास : 1. कथानक के कलेवर में जो रस सर्वाधिक व्याप्त हो, 2. जो रस महाकाव्य के मूल प्रभाव को व्यंजित करने में सहायक हो तथा जो पाठक की स्थायी मनःस्थिति का निर्माण करें। 3. जिस रस का सम्बन्ध प्रमुख पात्र-नायक या नायिका की मूलवृत्ति से हो अर्थात् जिस रस में उसकी मूलवृत्ति का प्रतिफलन हो। 4, महाकाव्य के मूल उद्देश्य अथवा फलागम का आस्वाध रूप हो, वही रस अंगीरस कहा जा सकता है । अंगीरस : शान्त रस - अंगीरस की उपर्युक्त कसौटियों के आधार पर "पार्श्वपुराण" का अंगीरस “शान्तरस" है; क्योंकि वह कथानक में सर्वाधिक व्याप्त है । इसी रस में कथानक की सम्पूर्ण व्यंजना होती है तथा यही रस पाठक पर सर्वाधिक प्रभाव डालता है । शान्तरस से प्रभावित पाठक ऐहिक जीवन और जगत के प्रति उपेक्षित दृष्टि अपनाते हुए परमानन्द की प्राप्ति के प्रति उत्साहित होता हुआ दृष्टिगत होता है । "पार्श्वपुराण" के नायक की मूलवृत्ति भी शान्तरसमय है। "पार्श्वनाथ के चरित्र से सर्वत्र शम या निर्वेद भाव ही झलकता है। "पार्श्वपुराण” का उद्देश्य अथवा फलागम का आस्वाद्य भी शान्तरसयुक्त है अत: सभी दृष्टिकोण से पार्श्वपुराण का अंगीरस "शान्स रस है। जिस प्रकार पार्श्वपुराण का कथानक जीवन को अखण्ड रूप से ग्रहण करता हुआ सर्वाग आत्मानन्द की सिद्धि करता है; उसी प्रकार पार्श्वपुराण का अंगीरस अखण्ड आत्मरस अर्थात् शान्तरस ही है। यह शान्त रस ही भूधरदास की दृष्टि में महारस एवं आनन्दरस है। साहित्य दर्पण में शान्त रस का लक्षण इस प्रकार दिया है - भावों के समत्व को अर्थात् जहाँ सुख, दुःख, चिन्ता, राग, द्वेष कुछ भी नहीं हैं, उसे मुनियों ने शान्त रस कहा है। ___आचार्यों के अनुसार शम शान्त रस का स्थायीभाव है। "शम” नामक स्थायीभाव की अन्तिम परणति है - “परमात्म तत्व अथवा मोक्ष की प्राप्ति" ३ 1. साहित्य दर्पण- विश्वनाथ, पृष्ठ 3/180 2. "काव्यशास्त्र" शान्तरस डॉ. सत्यदेव चौधरी, पृष्ठ 263
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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