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एक समालोचनात्मक अध्ययन
“पार्श्वपुराण" में अनेक स्थानों पर नगर का सुन्दर वर्णन किया गया है। प्राय: जम्बूद्वीप, भरतक्षेत्र, आर्यखण्ड तथा उसके किसी एक देश का उल्लेख करने के उपरान्त ही किसी नगर का वर्णन किया गया है । इसमें भी प्रायः उन नगरों का विशेष वर्णन किया गया है जो पार्श्वनाथ के किसी न किसी जन्म के स्थान से सम्बन्धित हैं, जैसे - मरूभूति के जन्म स्थान “पोदनपुर" नामक नगर का तानि निम्नलिखित मंदिनों में हुआ है -
"तहां नगर पोदनपुर नाम। मानो भूमि तिलक अभिराम ।। देवलोक की उपमा धरे। सब ही विधि देखत पन हरै ।। तुंग कोट खाई सजत, सघन बाग गृहपांति । चौपथ चौक बजार सौं, सोहे पुर बढ़ भाँति । ठाम ठाम गोपुर लसें, वापी सरवर कूप । किधं स्वर्ग ने भूमि को, भेजी भेंट अनूप ।।"
इसके अतिरिक्त लोकोत्तमपुर, ' अयोध्यानगर' तथा पार्श्वनाथ की जन्मस्थली बनारस नगरी ' का भी विस्तार से मनोहारी एवं आकर्षक वर्णन किया है। कवि ने नगरों के वर्णन में नगर में विद्यमान प्रमुख वस्तुएँ जैसे - गृह, बाग-बगीचे, चौक व चौपथ, बाजार, बावड़ी, कुओं, तालाब, मन्दिर आदि का नामोल्लेख उनकी विशेषताओं सहित किया है।
नगर के वर्णन की भाँति “पार्श्वपुराण" में स्थान - स्थान पर आवश्यकतानुसार प्रकृति के वन-वैभव का मनोहारी वर्णन मिलता है -
'अति सधन सल्लकी वन विशाल, जहं तरूवर तुंग तमाल ताल। बहु बेल जाल छाये निकुंज, कहि सूखि परे तिन पत्र पुंज। कहि सिकताथल कहिं शुद्ध भूमि, कहिं कपि तरूडारन रहे झमि।
कहिं सजल थान कहिं गिरि उत्तंग, कहिं रीछ रोझ विहरें कुरंग।। 1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 1, पृष्ठ 4 2. वही, अधिकार-2 पृष्ठ 12 3, वही, अधिकार-4 पृष्ठ 26 4. वही, अधिकार-5 पृष्ठ 445. वही, अधिकार-2 पृष्ठ 9