________________
महाकवि भूघरदास :
काशी देश के खेटपुरपटन गांव के वन का वर्णन करते हुए उसमें प्राप्त होने वाले वृक्षों की विस्तृत नाम परिगणना की गई है
-
224
"जहाँ बड़े निर्जन वन जाल ।। जिनमें बहुविधि विरछ विशाल ॥ केला करपट कटहल कैर। कैथ करोंदा कौंच कनेर ॥ किरमाला कंकोल कल्हार । कमरख कंज कदम कचनार ।। खिरनी खारक पिंड खजूर खेर खिरहटी खेजड भूर ॥ अर्जुन अबेली ऑब अनार । अगर अंजीर अशोक अपार ॥ **
Gl
उपरिलिखित नगर एवं वन का चित्रण परिगणनात्मक एवं वर्णनात्मक आलम्बन रूप में किया गया है। नगर वर्णन में नगर की सुन्दरता की तुलना के लिए देवलोक या स्वर्ग को उपमा एवं उत्प्रेक्षा के रूप में भी उल्लिखित किया है।
पार्श्वपुराण में प्रकृति शान्तरस के उद्दीपन के रूप में भी अंकित की गई है। काशीदेश के खेटपुरपट्टन गाँव के प्राकृतिक दृश्यों के वर्णन में शान्तभाव को उद्दीप्त करने की पर्याप्त सामर्थ्य है । शान्तभाव के उद्दीपन के रूप में किया गया सरोवर, नदी, एवं पर्वत का वर्णन मनमोहक है । सरोवरका वर्णन निम्नानुसार है
" इहि विधि रहे सरोबर छाय । सबही कहत कथा बढ़ जाय ।।
तही साधु एकांत विचार
I
करै पठनपाठन विधि सार ।।
I
विविध सरोवर शीतल ठाम पंथी बैठि लेहि बिसराम ।। निर्मल नीर भरे मनहार । मानो मुनिचित विगत विकार ॥2
सरोवर में भरे जल की उत्प्रेक्षा मुनियों के विकार रहित चित्त से की है। मूर्त प्रकृति से अमूर्त भावों की उत्प्रेक्षा भूधरदास की अपनी विशेषता है । इसी प्रकार नदी का वर्णन भी द्रष्टव्य है -
"नीर अगाध नदी नित है। जलचर जीव तहाँ नित रहें ।। मुनि भूषित जिनके तीर । काउसग्ग धरि ठाड़े धीर ॥ ३
113
1. पार्श्वपुराण – कलकत्ता, अधिकार 5, 2. पार्श्वपुराण - कलकत्ता, अधिकार 5, 3. पार्श्वपुराण – कलकत्ता, अधिकार 5,
पृष्ठ 43
पृष्ठ 43
पृष्ठ 43