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एक समालोचनात्मक अध्ययन
219 "पार्श्वनाथ" रूपी रत्न को जन्म देने वाली पृथ्वी की तरह है। उनकी महिमा का वर्णन करने में बुद्धि समर्थ नहीं है।'
उपर्युक्त सभी पात्र पार्श्वनाथ के माता-पिता एवं सम्बन्धी हैं। इन सबका चरित्र अधिक विस्तार नहीं पा सका है।
राजा श्रेणिक - भगवान महावीर के समवशरण में गौतम गणघर से पार्श्वनाथ का चरित्र सुनने की इच्छा व्यक्त करने वाले राजा श्रेणिक हैं। उनकी पटनारी धर्मात्मा “चेलना” है। वे मगधदेश के राजगृही नगर के राजा है। वे बहत पुण्यशाली एवं नीतिवान हैं। वे सारभत क्षायिक सम्यग्दर्शन सहित हैं तथा शील आदि सब गुणों के धारक हैं।
तीर्थकर “पार्श्वनाथ” के पंचकल्याणकों को मनाने हेतु बड़े उत्साह, भक्तिभाव एवं श्रद्धापूर्वक स्वर्ग लोक से इन्द्र आदि सभी देव सपरिवार आते हैं तथा अनेक प्रकार से भक्ति, स्तुति एवं नृत्य आदि करते हैं। इससे उनके चरित्र की कतिपय विशेषताओं की ओर सहज ही संकेत हो जाता है । यह संकेत ही उनके चरित्र को इंगित करता है। कवि ने सभी देवों के चरित्र का पृथक्-पृथक् संकेत न करके भगवान की भक्ति, स्तुति, नृत्य आदि करने तथा पंचकल्याणकों में विशेष भाग लेने वालों के रूप में उनका सामान्य चरित्र चित्रित किया है। इस चित्रण में प्रमुखता इन्द्र के चरित्र को मिली है ; क्योंकि उसके ही निर्देशन एवं आज्ञा में सभी कार्य सम्पन्न होते हैं तथा वही सबका प्रतिनिधित्व करता हुआ अग्रगण्य रहता है।
(ग) पार्श्वपुराण में प्रकृति-चित्रण महाकाव्य के शास्त्रीय लक्षणों के अनुसार महाकाव्य में प्रकृति वर्णन का होना आवश्यक है । आदिकाल से ही मानव प्रकृति के साहचर्य की अभिव्यक्ति अपनी वाणी में किसी ने किसी रूप में करता आया है। उन समस्त रूपों और प्रकारों को शास्त्र के अन्तर्गत बाँधने की चेष्टा विद्वानों ने की है। उसी आधार पर काव्य में प्रकृतिवर्णन के निम्नलिखित रूप मिलते हैं .
1, पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 5, पृष्ठ 45 2. पार्श्वपुराण- कलकता, अधिकार 1, पृष्ठ 3