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________________ 220 महाकवि भूधरदास: 1. आलम्बनरूप में - आलम्बनरूप में भी प्रकृति के कई प्रकार के वर्णन मिलते हैं। जैसे - वस्तु परिगणनात्मक वर्णन, सामान्य वर्णन और संश्लिष्ट वर्णन। 2. उद्दीपनरूप में - उद्दीपन रूप में प्रकृति का दो रूपों में वर्णन होता . है - एक मानव भावनाओं की अनुरूपता में और दूसरा मानव भावनाओं की . प्रतिकूलता में। 3. अलंकाररूप में - अलंकाररूपी प्रकृति का दो रूपों का वर्णन होता है - एक मानवीकरण के रूप में, दूसरा अप्रस्तुत योजना के रूप में। 4. रहस्य भावना के रूप में - रहस्य भावना के रूप में प्रकृति वर्णन तीन रूपों में किया जाता है - पहला जिज्ञासात्मक रूप में, दूसरा दार्शनिक रूप में और तीसरा विराट भावना के आरोपण के रूप में। 5. पृष्ठभूमि के रूप में - पृष्ठभूमि के रूप में प्रकृति वर्णन दो प्रकार से किया जाता है - मानवीय भावनाओं की अनुरूपता में और मानवीय भावनाओं के वैषम्य में। 6. उपदेश के रूप में - प्रकृति उपदेश का भी माध्यम रही है। इन उपदेशों की अभिव्यक्ति प्रकृति के माध्यम से तीन रूपों में की जाती है - प्रभु-सम्मित रूप में, सुहृद-सम्मित रूप में और कान्ता-सम्मित रूप में । अन्योक्ति, रूपक, प्रतीक आदि अभिव्यक्ति प्रसाधनों का आश्रय भी अधिकत्तर उपदेशप्रधान प्रकृति चित्रणों में ही लिया जाता है। 1 पार्श्वपुराण के प्रकृत्ति चित्रण में मानवीय भावनाओं को उद्दीप्त करने के लिए कवि का सायास प्रयोग और परम्परागत प्रयोग दृष्टिगत होता है । परम्परागत प्रयोग के रूप में आलम्बन और उद्दीपन - दोनों रूपों का प्रयोग पार्श्वपुराण में किया गया है। आलम्बन के अन्तर्गत प्रकृति का सजीव संश्लिष्ट वर्णन स्वर्ग, नरक एवं वाबीस परीधह आदि के वर्णन में किया गया है। नगरों एवं वनों के वर्णन में वस्तु परिगणनात्मक रूप का प्रयोग दृष्टव्य है । एक स्थान पर कवि ने वन का वर्णन करते हुए 89 वृक्षों का नाम परिगणन किया है। यह सम्पूर्ण वर्णन इतिवृत्तात्मक बन पड़ा है। 1. शास्त्रीय समीक्षा के सिद्धान्त- गोविन्द त्रिगुणायत, भाग 2, पृष्ठ 71
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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