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एक समालोचनात्मक अध्ययन
इसीलिये वह उससे मिलने आये छोटे भाई मरूभूति के ऊपर हाथ में ली हुई पत्थर की शिला पटक कर उसकी हत्या कर देता है - "शिला सहोदर शीश पै, डारी वज्र समान । पौर न आई पिशून को, धिक दुर्जन की बान ।। " इहि विधि पापी कमठ ने, हत्या करी महान ।
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इस प्रकार पहले जन्म में मरूभूति का बड़ा भाई कमठ कठोर परिणामी, नीच, कुकर्मी एवं हत्यारा है। यह साधु होकर तपस्या करते हुए भी अपने क्रूर परिणाम नहीं छोड़ पाता है और क्रोध में मरूभूति की हत्या कर बैठता है ।
दूसरे जन्म में कमठ काला सर्प बनकर हाथी बने मरूभूति को वैर के कारण डसता है -
"सो कमट कलंकी मूवो । ता वन कुरकट अहि हूवो ॥ तिन' आय इस्यो गज ज्ञाता । यह बैर महा दुख दाता ||
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तीसरे जन्म में वह नारकी बनता है.
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"कुर्कटनामा कमठचर, दुष्ट नाग दुखदाय ।
सो मरि पंचम नरक में, पर्यो पाप वश जाय ।'
नरक से निकलकर वह अजगर बनता है तथा वैर के संस्कार को लिये हुये उसी स्थान पर आ जाता है, जहाँ अग्निवेग मुनिराज तपस्या करते हैं तथा उनका भक्षक बन जाता है -
" बैर भाव उस्तै नहि टर्यो । फेरि आय अजगर अवतर्यो ।। संसकारवश आयो तहां । हिमगिरि गुफा मुनीश्वर जहाँ ॥ * 1+++5 अजगर मरकर पुनः नरक में जाता है -
" कमठ जीव अजगर तन छोरिं । उपज्यो छछे नरक अतिघोर ||* नरक की आयु पूरी करके वह शिकारी भील के रूप में जन्म लेता हैं -
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1. पार्श्वपुराण - कलकत्ता, अधिकार 1, पृष्ठ 8
3. वही, अधिकार 2, पृष्ठ 11
5. वही, अधिकार 2, पृष्ठ 13
6. वही अधिकार 3, पृष्ठ 19
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2. वही 4. वहीं,
अधिकार 1, पृष्ठ 8 अधिकार 2, पृष्ठ 13