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महाकवि भूधरदास :
'जेठो नंदन कमठ कुपूत । दूजो पुत्र सुधी मरूभूत ॥ जेठो मतिहेटो कुटिल । लघु सुत सरल स्वभाव ॥"
जब मरूभूति राजा के साथ शत्रु को वश में करने जाता है तब मूर्ख कमठ अनीतिपूर्ण तथा स्वच्छन्द आचरण करने लगता है -
*पीछे कमठ निरंकुश होय। लग्यो अनीति करन शठ सोय ॥ जो मन आवै को हर है। मै गला सक्कों इस साल 2।
एक दिन कमठ अपने छोटे भाई मरूभूति की स्त्री को देखकर उस पर मोहित हो जाता है तथा छल-कपट से उसके साथ दुराचार कर लेता है---
“एक दिना लघु माता नारि। भूषण भूषित रूप निहारि।। राग अंध अति विहवल भयो। तीच्छन काम ताप उर दहे ।। “छल बल कर भीतर लई बनिता गई अजान । राग वचन भाषे विविध, दुराचार की खान ।।
राजा उसे नीच, अधर्मी एवं कुकर्मी जानकर दण्ड देता है तथा प्रजा उसे धिक्कारती है -
"अति निन्दो नीच कुकर्मी । आनो निरधार अधर्मी। राजा अति ही रिस कीनी। सिर मुण्ड दण्ड बहु दीनी ॥ “पुरवासी लोक धिकारै । बालक मिली कंकर मारै ॥ राजा द्वारा दण्डित कमठ दुखी होकर भूताचल पर्वत पर जाकर तपस्या करने लगता है -
"भूताचल पर्वत की ओर। भ्राता कमठ करे तप घोर ॥ परन्तु तपस्या करने पर भी उसके हृदय में रंचमात्र भी ज्ञान और वैराग्य नहीं होता है -
“करन लगो तब काय क्लेश । उर वैराग विवेक न लेश ।। 1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 1, पृष्ठ 5 2. वही, अधिकार 1, पृष्ठ 5 3. वही, अधिकार 1, पृष्ठ 5
4. वही, अधिकार 1, पृष्ठ 6 5. वही, अधिकार 1, पृष्ठ 7
6, वही, अधिकार 1, पृष्ठ 7 7. वही, अधिकार 1, पृष्ठ 7
8, वही, अधिकार 1, पृष्ठ 7