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एक समालोचनात्मक अध्ययन विशेष लक्षण एवं अतिशय दृष्टिगत होते हैं । इसीकारण गर्भ में आने के छह माह पूर्व से लेकर जन्म तक पंचाश्चर्य, जन्म होने पर दश अतिशय केवलज्ञान होने पर दश अतिशय, देवों द्वारा किये गये चौदह अतिशय एवं आठ प्रातिहार्य होते हैं। इन्द्रादि देवों द्वारा गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान एवं निर्वाण-कल्याणक मनाना, स्तुति, नृत्य, गान आदि करना उनके तीर्थकरत्व के सूचक हैं।
पार्श्वनाथ में तीर्थकरत्व की स्थापना ही धीरोदात्त नायक के साथ जुड़ी हुई है क्योंकि ईश्वरत्व के गुणों से मंडित होने वाला व्यक्तित्व धीरोदात्त ही हो सकता है, अन्य नहीं। पार्श्वनाथ का तीर्थंकर के रूप में विकास मानवता की अत्यन्त विकसित स्थिति में हुआ है । पार्श्वनाथ अपने पूर्वजन्मों में जिन मानवीय वृत्तियों को संस्कारित करते आ रहे थे उन्हीं का चरम विकास पार्श्वनाथ के तीर्थकर बनने पर हुआ। वह चरम विकास धीरोदात्त गुणों से युक्त नायक में ही सम्भव था, अन्य किसी में नहीं। इसीलिए कवि ने नायक को धीरोदात्त नायक के गुणों से युक्त दिखलाया है। कवि पार्श्वनाथ के चरित्र में तीर्थकर सूचक घटनायें इस प्रकार गॅथता है कि वे प्रशन दिखाई न देकर कथानक का अंग ही दृष्टिगत होती हैं। वे सभी घटनाएँ कथानक का अभिन्न अंग बनकर पार्श्वनाथ के चरित्र को सर्वाधिक गौरव से मण्डित करती हई तीर्थकर बना देती है तथा उनके चरित्र को धीरोदात्त नायक के पद पर प्रतिष्ठित करवा देती हैं। इसीकारण पार्श्वनाथ सर्वत्र महासत्त्व, क्षमावान, स्थिर, अतिगम्भीर, दृढव्रत, निरहंकारी जैसे महान गुणों से युक्त हैं।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पार्श्वपुराण का नायक पार्श्वनाथ महाकाव्योचित नायक के सभी गुणों से युक्त है एवं महाकाव्य के नायकत्व की कसौटी पर खरा उतरता है।
प्रतिनायक : संवर (कमठ का जीव) - नायक के लक्ष्य प्राप्ति के प्रयलों में बाधक होने के कारण "संवर" नाम का ज्योतिषी देव प्रतिनायक है। वह नायक पार्श्वनाथ के जन्म-जन्म का वैरी है। पार्श्वनाथ के पूर्व के नौ जन्मों में भी वह सदैव पार्श्वनाथ का विरोधी एवं घातक रहा है। पार्श्वनाथ प्रथम जन्म में विश्वभूति मंत्री का छोटा पुत्र "मरूभूति" तथा वह बड़ा पुत्र “कमठ" था । कमठ मरूभूति का बड़ा भाई होकर भी कठोर हृदय, मूर्ख और दुर्जन है; जबकि मरूभूति छोटा होकर भी बुद्धिमान और सज्जन है -