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________________ 210 महाकवि भूधरदास : "भये अनन्त चतुष्टयवन्त । प्रगटी महिमा अतुल अनन्त ।। दिव्य परम औदारिक देह । कोटि भानु दुति जीती जेह ॥ अलौकिक अद्भुत सम्पदा । मंडित भये जिनेश्वर तदा । वचन अगोचर महिमा सार । वरनन करतत न पइये पार॥ इसके बाद कुछ कम 70 वर्ष तक भारतवर्ष के विभिन्न स्थानों पर उनका समवशरण सहित विहार तथा दिव्यध्वनि द्वारा धर्मोपदेश होता है। अन्त में वे श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन सम्मेदशिखर नामक पर्नत से निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त करते हैं - "विरहमान दरसावत बाट । सत्तर वरष भये कछु घाट। सम्मेदाचल शिखर जिनेश। आये श्री पारस परमेश "सावन सुदि सातै शुभवार । विमल विशाखा नखत मंझार ।। तजि संसार मोक्ष में गये। परमसिद्ध परमातम भये ॥* पार्श्वनाथ का निर्वाण हुआ जानकर इन्द्रादि देव उनका निर्वाण कल्याणक मनाने आते हैं - "तब इन्द्रादिक सुन समुदाय। मोक्ष गये जाने जिनराय ।। श्री निर्वाण कल्याणक काज। आये निज निज वाहन साज । 4 देव कल्याणक मनाकर यथा स्थान चले जाते हैं - “निज निज थान गये सब देव" इस प्रकार “पार्श्वपुराण" के नायक पार्श्वनाथ का व्यक्तित्व तीर्थकरत्व से मण्डित है। उनके बहिरंग और अन्तरंग - दोनों व्यक्तित्व में तीर्थकर के 1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 8, पृष्ठ 69 2. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 63 3. पार्श्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 63 4. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 9, पृष्ठ 64 5. पार्श्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार , पृष्ठ 64
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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