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एक समालोचनात्मक अध्ययन वैराग्य होने पर लौकान्तिक देव वैराग्य की अनुमोदना के लिए आते हैं -
“इत लोकान्तिक सुन आय, पुष्पांजलि दे पूजे पाय ॥"" अन्य सभी देव पार्श्वनाथ का दीक्षा (तप) कल्याणक मनाने के लिए परिवार सहित आते हैं -
“अब चौविधि इन्द्रादिक देव । चढ़ि निज निज बाहन बहुभेद। हर्षित उर परिवार समेत । आये तृतीय कल्याणक हेत॥2
पार्श्वनाथ पालने में बैठकर दीक्षा के लिए वन में जाते हैं। पालकी से उत्तरकर सिद्धों को नमस्कार कर पंचमुष्टि केशलोंच कर नग्न दिगम्बर मुनि बनकर समता भाव अंगीकार करते हैं -
"शत्रु मित्र ऊपर समभाव तिन कंचन गिन एक सुभाव।।
सोमभाव स्वामी उर धार, पटभूषन स्व दीने द्वार ।।। एक बार जब पार्श्वनाथ अहिक्षेत्र के वन में ध्यानस्थ थे तब कमठ का जीव जो उनके नाना के जन्म से मरकर संवर देव बना था, आकाश मार्ग से जा रहा था। पार्श्वनाथ को देखकर उसका पूर्व वैर जागृत हो गया और उसने पार्श्वनाथ पर घोर उपसर्ग किया। पानी बरसाया, ओले बरसाये, भयंकर तूफान चलाया और पत्थर तक बरसाये परन्तु वह उन्हें आत्मसाधना सेन डिगा सका। इसी समय धरणेन्द्र - पद्मावती जिन्हें पार्श्वनाथ ने नाग-नागिनी के रूप में सम्बोधित किया था पार्श्वनाथ की रक्षा करने के उद्देश्य से आये और पार्श्वनाथ के ऊपर सर्प का फन फैला दिया। पार्श्वनाथ ने आत्मसाधना की पूर्णता में चैत्रकृष्ण चतुर्दशी के दिन केवलज्ञान प्राप्त किया -
"चेत अंधेरी चौदह जान, उपज्यो प्रभु के पंचम ज्ञान ।।" " __ केवल ज्ञान होते ही पार्श्वनाथ के 10 अतिशय होते हैं। इन्द्रादि उनके केवलज्ञान-कल्याणक मानने आते हैं । तीर्थकर होने से कुबेर समवशरण (धर्मसभा) की रचना करता है। उनके वर्णनातीत अनन्त चतुष्टय, 14 देवकृत अतिशय तथा 8 प्रातिहार्य (मंगल द्रव्य ) होते हैं -
1. पार्श्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार ? पृष्ठ 64 2. पाश्वपुराण- कलकत्ता, अधिकार 7 पृष्ठ 65 3, पार्श्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार 7 पृष्ठ 66 4. पाश्वपुराण-कलकत्ता, अधिकार 8 पृष्ठ 69