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महाकवि भूधरदास :
गर्भ के नौ माह पूर्ण होने पर पौष कृष्ण एकादशी को पार्श्वनाथ का जन्म होता है । जन्म होने पर दस अतिशय होते हैं तथा देव पार्श्वनाथ का जन्मोत्सव मनाने बनारस नगर में आते हैं -
"निस्धार बनारसि मगर धान, यति मनन्यो जाल आन । प्रभु जन्म कल्याणक करन काज, उद्यम आरम्भ्यो देवराज ।।"
पार्श्वनाथ के जन्मकल्याणक मनाने के पश्चात् देव अपने-अपने स्थान चले जाते हैं और पार्श्वनाथ देवकुमारों के साथ क्रीड़ा करते हुए बाल्यकाल व्यतीत करके अनेक विद्याओं और अनेक कलाओं को बिना ही गुरु के सिखाये सीखकर यौवनावस्था प्राप्त कर लेते हैं । वे माता पिता द्वारा बहुत प्रयत्न किये जाने पर विवाह से इन्कार कर देते हैं, जिससे माता पिता बहुत दुःखी होते हैं
"सुन नरेन्द्र लोचन भरे, रहे बदन विलखाय।
पुत्र व्याह वर्जन वचन, किसे नहीं दुखदाय ॥ एक दिन पार्श्वनाथ वन विहार के समय अपने नाना को पंचाग्नि तप करते देखते हैं। लकड़ी के बीच नाग नागिनी का जोड़ा देखकर वे उन्हें लकड़ी जलाने से रोकते हैं। पार्श्वनाथ के नाना उनकी बात तब तक नहीं मानते, जब तक वे लकड़ी को फाड़कर नहीं देख लेते । लकड़ी फाड़ते ही उसमें से अधजले नाग नागिनी निकलते हैं । पार्श्वनाथ उन्हें सम्बोधित करते हैं, जिसके फलस्वरूप शुभभावों से मरकर वे धरणेन्द्र-पद्यावती बन जाते हैं। पार्श्वनाथ के नाना मरकर "संवर" नामक ज्योतिषी देव बन जाते हैं। इस प्रकार पार्श्वनाथ जन्म से ही प्रतिभाशाली, चमत्कृत बुद्धिनिधान, अनेक सुलक्षणों के धनी, विरक्तहदय, दयावान एवं परोपकारी हैं। अयोध्या के दूत के मुख से अयोध्या में तीर्थंकर के अवतार लेने आदि की विशेष बातें सुनकर पार्श्वनाथ विरक्त हो जाते हैं -
"सुनि दूत वचन वैरागे, निज मन प्रभु सोचन लागे॥"3 विरक्त होने पर वे वैराग्य की दृढ़ता के लिए बारह भावनाओं का चितवन करते हैं -
"ये दशदोय भावना भाय। दिन वैरागि भये जिनराय ॥ 1, पार्श्वपुराण- कलकचा, अधिकार 6 पृष्ठ 51 2. वही, अधिकार 6, पृष्ठ 61 3. वही, अधिकार 7, पृष्ठ 63
4. वही, अधिकार 7, पृष्ठ 64