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________________ 214 महाकवि भूधरदास : "पूरन आयु भोगकर मर्यो । वनहि कुरंग भील अवतर्यो ।' वज्रनाभि मुनिराज को देखकर वह शिकारी भी उन्हें बाण से मार देता है - "देखि दिगम्बर कोप्यो नीच। कंपित अघर दशनतल मीच ॥ तन कमान काल लों लई। तीखन शर मार्यो निर्दई ॥" वह भील महान दुःखों को पाता हुआ मुनि हत्या के पाप से भरकर नारकी बनता है - "अब सो भील पहादुख पाय। रूद्रध्यान सो छोड़ी काय ॥ मुनि हत्या पातक तैं मरयो। चरम शुभ्र सागर में परयो ॥" नरक से निकलकर वह सिंह बनता है - "सो मर नरक कमठचर पापी, नाना मांति विपत्ति भरी। तिस ही कानन में विकटानन, पंचानन की देह धरी ॥4 सिंह आनन्द मुनिराज को देखकर पूर्व जन्म के वैर के संस्कार के कारण उसका घपती बन जाता है - “देखि दिगम्बर केहरि कोप्यो, पूर्वभवान्तर बैर दह्यो। धायो दुष्ट दहाड़ ततच्छन। आन अचानक कंठ गह्यो। मुनि की हत्या के पाप से वह पुन: नरक में जन्म लेता है - "मुनिहत्यावश दुर्गति गयो, पंचमनरक बास सो लयो। नरक आयु पूरी कर वह अनेक जन्म धारण करता है। अनेक पशुयोनि के जन्मों में दुःख भोगकर पाप कर्मों की समाप्ति एवं शुभकर्मों की फलप्राप्ति के कारण वह “महीपाल" नामक पार्श्वनाथ के नाना के रूप में जन्म लेता है।' नाना के रूप में पंचाग्नि तप करते हुए वह अभिमानी जीव हिंसा करता है, जिसे पार्श्वनाथ अपने दिव्यज्ञान से जानकर उसकी विनय एवं प्रणाम नहीं करते हैं जिससे वह उन पर क्रोधित हो जाता है। अपने पंचाग्नि तप के कारण वह 1. पार्श्वपुराण--- कलकत्ता, अधिकार 3, पृष्ठ 19 3. वही, अधिकार 3, पृष्ठ 20 5. वही, अधिकार 4, पृष्ठ 37 7. वही, अधिकार 7, पृष्ठ 61 2. वही, अधिकार 3, पृष्ठ 19 4. वही, अधिकार 4, पृष्ठ 37 6. वही, अधिकार 7, पृष्ठ 61 8. वही, अधिकार 7, पृष्ठ 61
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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