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________________ 06 महाकवि भूधरदास : अहमिन्द्र पद से च्युत होकर वे वज्रबाहु राजा तथा प्रभाकरी रानी के आनन्दकुमार पुत्र होते हैं। वे अनेक लक्षणों से युक्त महामंडलीक राजा बन जाते हैं। श्वेत केश देखकर राजा ससार एव भोगों से विरक्तचित्त हो जाते हैं - सो लखि सेत बाल भूपाल। भोग उदास भये तत्काल ॥ जगतरीति सब अधिर असार । चित चित में मोह निवार ।। आनन्द मुनिराज सोलहकारण भावनाओं को भाकर तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध करते हैं - सोलहकारण ये भवतारन, सुमरत पावन होय हियो। भावै श्री आनन्द महामुनि, तीर्थकर पद बन्ध कियो।' कमठ का जीव सिंह बनकर आनन्द मुनि का घात करता है - "देखि दिगम्बर केहरि कोप्यो, पूर्वभवान्तर बैर रहो। थायो दुष्ट दहाड़ ततच्छन, आन अचानक कंठ गयो॥ मुनि अपने शुभभावों से नहीं डिगते हैं, जिसके फलस्वरूप आनत स्वर्ग में इन्द्रपद प्राप्त करते हैं - "अंत समय परजंत तपोधन, शुभभावन सों नाहि चये। आनत नाम स्वर्ग में स्वामी, सुरगन पूजित इन्द्र भये॥' इन्द्र पद में भी वे नन्दीश्वर द्वीप आदि जाकर दर्शन पूजन आदि करते हैं, तत्त्वचर्चा आदि शुभकार्यों में अपना समय व्यतीत करते हैं - "इहविधि विविध करै शुभकाज । महापुन्य संचै सुरराज ॥ उपर्युक्त नौ जन्मों में पार्श्वनाथ प्रत्येक जन्म में दया, क्षमा, समता, निरहंकार, अपरिग्रह आदि गुणों से युक्त ही दृष्टिगत होते हैं। प्रत्येक जन्म में उनका चरित्र धीरोदात्त नायक के अनुरूप ही दिखलाई देता है। इन्द्र की आयु के छह मास शेष रहने पर इक्ष्वाकुवंशीय, काश्यपगोत्रीय 1. पावपुराण- कलकत्ता, अधिकार 3 पृष्ठ 19 2, वही, अधिकार 4, पृष्ठ 26 4. वही, अधिकार 4, पृष्ठ 36 6. वही, अधिकार 4, पृष्ठ 40 3. वही, अधिकार 4, पृष्ठ 29 5. वही, अधिकार 4, पृष्ठ 37
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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