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________________ 19 महाकवि पूधरदास : पार्श्वनाथ के जन्म में समवशरण आदि बाहा विधति से युक्त तीर्थकर पद पाना है। कथानक की गरिमा इन बाह्य भौतिक उपलब्धियों से उतनी नहीं है, जितनी वीतरागी होकर इन सबसे निर्लिप्त रहने में है । दूसरे को जीतने या प्राप्त करने की अपेक्षा अपने को जीतना या प्राप्त करना, कठिन किन्तु सर्वाधिक गौरवपूर्ण है। इसी गरिमा को लिए हुए “पार्श्वपुराण" का कथानक महान कथानक बन गया है। भूधरदास द्वारा रचित महाकाव्य का नाम “पार्श्वपुराण" है " पार्श्व” शब्द का अर्थ तीर्थकर पार्श्वनाथ तथा "पुराण" शब्द का अर्थ पुरातन पुरुषों का चरित्र है । लाक्षणिक अर्थ में प्राचीन आख्यान को भी पुराण कहा जाता है। जैन पुराणों का प्रतिपाद्य लगभग समान रहता है। जैनपुराणों का प्रतिपाद्य विषय-क्षेत्र (तीन लोक), (काल तीन काल), तीर्थ (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र), सत्पुरुष (त्रिषष्ठिशलाका महापुरुष), सत्पुरुषों की पाप से पुण्य की ओर प्रवृत्ति आदि है। "पाशवपुराण" का प्रतिपाद्य भी उपर्युक्त सभी हैं जिनका विवेचन यथास्थान किया गया है। "पार्श्वपुराण" का कथानक महान होने के साथ-साथ पुराणसम्मत भी है। भूधरदास ने “पार्श्वपुराण" की रचना पूर्व के अनेक पुराणों से आधार ग्रहण करके की है। उनके पूर्व अनेक पुराणों में पार्श्वनाथ के जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला गया है। उन्होंने अपने "पार्श्वपुराण" में उन्हीं सब पुराणों से सम्मत कथानक प्रस्तुत किया है । भूधरदास के पूर्ववर्ती कतिपय पुराण निम्नलिखित हैं; जिनसे उन्होंने अपने कथानक को ग्रहण किया है - 1. जिनसेन द्वितीय, पायाभ्युदय - नवीं शती 2. गुणभद्र, उत्तरपुराण - नवीं शती 3. पद्मकीर्ति, पार्श्वपुराण - दसवीं शती 4. दामनन्दि, पुराणसंग्रह - दसवीं शती 5. मल्लिषेण, महापुराण - दसवीं शती 1. पं. गुलाबचन्द्र- पुराणसार संग्रह, प्रस्तावना पृष्ठ 5
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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