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________________ 188 महाकवि भूधरदास : निर्वाण कल्याणक मनाने आते हैं। अग्निकुमार देव, अपने मुकुट से निकली अग्नि द्वारा जिनदेह का दहनकर निर्धाणकल्याणक का नियोग पूरा कर अपने-अपने स्थानों को चले जाते हैं। ___ इस अधिकार के अन्त में कवि ने अनेक प्रकार से धर्म की महिमा बताते हुए वैरभाव छोड़कर सबसे मैत्री करने का उपदेश भी दिया है तथा अपनी लघुता प्रदर्शित करते हुए ग्रन्थ समाप्त करने की तिथि का उल्लेख किया है। 2. कथानक की सर्गबद्धता एवं छन्दबद्धता :- पार्श्वपुराण पुराण न होकर महाकाव्य है । उसका कथानक अवश्य ही पौराणिक है। इसमें पार्श्वनाथ के अनेक पूर्व भवों से लेकर मोक्षप्राप्ति तक की कथा नियोजित हुई है। समग्र कथानक में पार्श्वनाथ के चरित्र का चित्रण हुआ है । नायक पार्श्वनाथ के जीवन से सम्बन्धित जितने भी अवान्तर प्रसंग और घटनाथ हैं उन सभी से भूलकथा परिपुष्टं हुई है। पार्श्वपुराण में “सर्ग" के स्थान पर “अधिकार* नाम दिया गया। इसमें कुल नौ अधिकार हैं। प्रत्येक अधिकार एक दूसरे से जुड़ा है । ये अधिकार आपस में जुड़कर कथानक को गति प्रदान करते हैं। प्रथम अधिकार में पूर्व पीठिका है। दण्डी के अनुसार-महाकाव्य का प्रारम्भ आशीर्वाद, नमस्कार या वस्तु निर्देश द्वारा होना चाहिये । “पाशवपुराण" का प्रारम्भ नमस्कार या स्तुति द्वारा हुआ है । सर्वप्रथम पार्श्वनाथ की स्तुति की गई। पश्चात् पाँचों परमेष्ठियों एवं जिनवाणी की स्तुति या स्तवन किया गया है। कछ आचार्य महाकाव्य में दर्जन-निन्दा और सज्जन प्रशंसा का होना स्वीकार करते है। पावपुराण के प्रारम्भ में जिनकथा श्रवण की महत्ता के रूप में दुर्जननिन्दा और सज्जन प्रशंसा की गई है। काव्य का नाम नायक के नाम पर रखा गया है तथा अधिकारों के नाम मुख्य विषयवस्तु या घटनावर्णन के आधार पर रखे गये है। यथा - मरूभूतिभववर्णनं नाम प्रथम अधिकार, गजस्वर्गगमन विधाधरभवविद्युतप्रभमेव भववर्णनं नाम द्वितीयोधिकार वज्रनाभि-अहमिन्द्रसुख भिल्लनारकदु: खवर्णनं नाम तृतीयोधिकारः इत्यादि । इस प्रकार प्रत्येक अधिकार का नाम उसमें वर्णित विषयवस्तु को भलीभाँति स्पष्ट करता है । नौ अधिकारों में लिखा गया पार्श्वपुराण का कथानक पूर्णत: सर्गबद्ध है । विविध छन्दों में लिखा होने से कथानक छन्दबद्ध 1. पार्श्वपुराण - भूधरदास पृष्ठ 1 2. पार्श्वपुराण - भूधरदास पृष्ठ 1--2
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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