SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 187 एक समालोचनात्मक अध्ययन युवा होने पर पार्श्वनाथ पिता के बहुत आग्रह करने पर भी विवाह नहीं करते हैं और तीस वर्ष की यौवनावस्था में वैराग्य को प्राप्त होते हैं। पार्श्वनाथ को वैराग्य हुआ जान सभी देव दीक्षा कल्याणक मनाने हेतु बनारस आते है । देव पार्श्वनाथ को पालकी में बैठाकर वन में ले जाते हैं। वहाँ वे वस्त्राभूषण छोड़कर केशलोंच कर दिगम्बर दीक्षा लेते हैं। देव पार्श्वनाथ के केशों को क्षीरसागर में डाल दीक्षा कल्याण का नियोग पूरा कर अपने-अपने स्थानों को चले जाते हैं। अष्टम अधिकार :- पार्श्वनाथ संयम की विशेष साधना से मन: पर्ययझान प्राप्त कर लेते हैं । गुलखेटपुर के राजा ब्रह्मदत्त के यहां उनका आहार होने पर पंचाश्चर्य होते हैं। आहार लेकर वन में आकर प्रभु ध्यानस्थ हो जाते हैं। पार्श्वनाथ का नान' अपने कृतग से "संवर" नामक ज्योतिषी देव होता है। आकाश मार्ग से गमन करते समय उसका विमान ध्यानस्थ पार्श्वनाथ के ऊपर रुक जाता है। वह अपने अवधिज्ञान से पूर्व वैर का स्मरण कर पार्श्वनाथ का तप भंग करने के लिये वर्षा, आंधी, तूफान, पत्थर, डरावने रूप एवं आवाजों द्वारा घोर उपसर्ग करता है; जिससे धरणेन्द्र का आसन कम्पायमान होता है। वह पद्मावती सहित पार्श्वनाथ की रक्षा के लिये आता है तथा ऊपर फणमण्डप बना लेता है। आत्मध्यान की स्थिरता में क्षपकश्रेणी आरोहण कर चार घाति कर्मों का नाश कर पार्श्वनाथ को केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती है। केवलज्ञान के दस अतिशयों द्वारा पार्श्वनाथ को केवलज्ञान हुआ जान इन्द्रादि सपरिवार ज्ञानकल्याणक मनाने आते हैं। इन्द्र की आज्ञा से कुबेर समवशरण (धर्मसभा) की रचना करता है। सभी देव अनेक प्रकार से भगवान की स्तुति करते हुए समवशरण में यथास्थान बैठते हैं। __ नवम अधिकार :- समवशरण के मध्य विराजमान पार्श्वनाथ जिन से "स्वयंभू" नामक गणधर अनेक प्रश्न करते हैं; जिनके उत्तरस्वरूप दिव्यध्वनि द्वारा “पार्श्वप्रभु" हेय, ज्ञेय, उपादेय, छहद्रव्य, साततत्व, नौ पदार्थ, पंचास्तिकाय, सम्यग्दर्शनादि का स्वरूप बतलाते हैं। उसे सुनकर अनेक जीव धर्ममार्ग में लगते हैं। “संवर" नामक ज्योतिषी देव भी अपनी भूल पर पश्चाताप करता हुआ धर्म में लग जाता है। कुछ कम 70 वर्ष तक पार्श्वनाथ काशी, कौशल, मगध, पांचाल, मालव, अंग, वंग आदि अनेक देशों में विहार करते तथा धर्मोपदेश देते हुए अन्त में सम्मेदशिखर पहुँचकर योगनिरोध करके सम्पूर्ण कर्मों का नाशकर निर्वाण प्राप्त कर लेते हैं पार्श्वनाथ का निर्वाण हुआ जान इन्द्रादि
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy