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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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में पूर्ण समर्थ हो सके, जिसमें क्या कल्पना या सम्भावना पर आधारित ऐसे चरित्र या चरित्रों के महत्त्वपूर्ण जीवनवृत्त का पूर्ण या आंशिक रूप में वर्णन हो, जो किसी युग के सामाजिक जीवन का किसी न किसी रूप में प्रतिनिधित्व कर सके जिसमें किसी महत्त्प्रेरणा से अनुप्राणित होकर किसी महत् उद्देश्य की सिद्धि के लिए किसी महत्त्वपूर्ण, गंभीर अथवा रहस्यमय और आश्चर्योत्पादक घटना या घटनाओं का आश्रय लेकर संश्लिष्ट और समन्वित रूप से जाति विशेष या युग विशेष के समग्र जीवन के विविध रूपों, पक्षों, मानसिक अवस्थाओं और कार्यों का वर्णन और उद्घाटन किया गया हो और जिसकी शैली इतनी गरिमामया
और उदात हो कि युग-युगान्तर तक महाकाव्य के जीवित रहने की शक्ति प्रदान कर सके। पार्श्वपुराण का महाकाव्यत्व : मूल्यांकन के विशिष्ट बिन्दु
महाकाव्य के उपर्युक्त विविध मानदण्डों के आधार पर पार्श्वपुराण के महाकाव्यत्व का मूल्यांकन करने के लिए विशिष्ट बिन्दु निम्नानुसार है -
जिनके आधार पर पार्श्वपुराण का महाकाव्यत्त्व विवेच्य है . 1. सर्गबद्धता एवं छन्दबद्धता 2. महान एवं पुराणसम्मत कथानक
धीरोदात्त नायक 4. श्रृंगार, वीर एवं शान्त रस में से किसी एक रस की प्रधानता 5. प्रकृति वर्णन 6. महान उद्देश्य 7. शैली की उदात्तता एवं गम्भीरता
इन सब बिन्दुओं का विवेचन क्रमश : कथानक - एक दृष्टि, चरित्र चित्रण, प्रकृति चित्रण, रस-निरूपण, उद्देश्य-कथन आदि के रूप में विस्तार से किया जा
रहा है।
1. हिन्दी साहित्य कोश भाग-1 डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, द्वितीय संस्करण पृष्ठ 627