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महाकवि पूघरदास :
4. कुछ आलोचकों की समति में महाकाव्यों के पात्र देवता या देवता
जैसे ही होते हैं, किन्तु लुकन ने पात्रों में केवल मानवीय रूप की प्रतिष्ठा की है।
महाकाव्य का विषय परम्परा से प्रतिष्ठित और लोकप्रिय होता है। 6. कथा का सम्बन्ध नायक से होता है ।
शैली में उदात्तता और विराटता तथा उसमें एक ही छन्द का प्रयोग होना चाहिये।
महाकाव्य के सम्बन्ध में उद्धृत उपर्युक्त विभिन्न लक्षणों का समन्वय करते हुए महाकाव्य के सामान्य लक्षण निम्नलिखित प्रकार से गिनाए जा सकते
5.
1. महाकाव्य सर्गबद्ध हो तथा न्यूनतम 8 सर्ग हो । 2. महाकाव्य का नायक धीरोदात्त हो। 3. महाकाव्य की रचना विभिन्न छन्दों में हो । __महाकाव्य की कथा इतिहास या पुराणसम्मत हो ।
श्रृंगार, वीर और शान्त रसों में से कोई एक रस प्रधान तथा शेष रस
गौण हों। 6. प्रकृति वर्णन के रूप में नगर, नदी, पर्वत, नाले, सूर्योदय, सूर्यास्त
आदि का वर्णन होना चाहिये। 7. शैली उदात्त एवं गम्भीर हो। 8. उद्देश्य महान होना चाहिये।
महाकाव्य की उपर्युक्त सभी परिभाषाओं एवं लक्षणे का समावेश करते हुए हिन्दी साहित्य कोशकार महाकाव्य की परिभाषा इस प्रकार देते हैं :
महाकाव्य वह छन्दोबद्ध कथात्मक रूप है, जिसमें क्षिप्र कथाप्रवाह या अलंकृत वर्णन अपना मनोवैज्ञानिक चित्रण से युक्त ऐसा सुनियोजित सांगोपांग और जीवन्त लम्बा कथानक हो, जो रसात्मकता या प्रभावान्विति उत्पन्न करने