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एक समालोचनात्मक अमा
4.
नाटक कथा और गीतिकाव्य के अनेक तत्त्वों के सम्मिश्रण से संघटित कथानक का निर्माण ।
5. शैली की गम्भीरता, उदारता और मनोहारिता ।
पाश्चातय विद्वानों की दृष्टि में महाकाव्य का स्वरूप :
पाश्चात्य विद्वानों ने भी महाकाव्य (EPIC) को गौरवपूर्ण स्थान देते हुए उसके स्वरूप की विभिन्न प्रकार से व्याख्या की है। प्रसिद्ध यूनानी आलोचक अरस्तू ने महाकाव्य के सम्बन्ध में अपने काव्यशास्त्र में लिखा है कि "महाकाव्य ऐसे उदात्त व्यापार का काव्यमय अनुकरण है, जो स्वतः गम्भीर एवं पूर्ण हो, वर्णनात्मक हो, सुन्दर शैली में रचा गया हो, जिसमें आद्यन्त एक छन्द हो, जिसमें एक ही कार्य हो जो पूर्ण हो, जिसमें प्रारम्भ, मध्य और अन्त हो, जिसके आदि और अन्त एक दृष्टि में समा सकें, जिसके चरित्र श्रेष्ठ हो, कथा सम्भावनीय हो और जीवन के किसी एक सार्वभौम सत्य का प्रतिपादन करती हो। " "
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एवरकाम्बी के अनुसार :- " वृहदाकार वर्णनात्मक प्रबन्धत्व के कारण ही कोई रचना महाकाव्य नहीं बन जाती है। महाकाव्य उसी प्रबन्ध को कहेंगे जिसकी शैली महाकाव्योचित हो और जिसमें कवि की कल्पना और विचारधारा का उदात्त रूप दिखाई पड़े। उसके अनुसार महाकाव्य में ऐसी कोई बात नहीं होना चाहिये जो अगम्भीर और महत्त्वहीन हो ।" 2
इसके अतिरिक्त एफ बी. गमर, डबल्यू एम. डिक्सन, वाल्टेयर आदि अनेक पाश्चात्य विद्वानों ने महाकाव्य के स्वरूप पर प्रकाश डाला है। इन सभी के आधार पर महाकाव्य के सामान्य लक्षण निम्नानुसार हैं :
1. महाकाव्य एक विशालकाय प्रकथन प्रधान काव्य है ।
2. नायक युद्धप्रिय हो तथा पात्रों में शौर्यगुण की प्रधानता अनिवार्य है।
3. महाकाव्य में केवल व्यक्ति का चरित्र चित्रण ही नहीं होता अपितु उसमें सम्पूर्ण जाति के क्रिया कलापों का वर्णन होना चाहिये । जातिगत भावनाओं की प्रधानता महाकाव्य में होती है।
1. काव्यरूपों के मूल स्रोत और उनका विकास डॉ. शकुन्तला दुबे पृष्ठ 83 2. काव्य के रूप डॉ. शकुन्तला दुबे पृष्ठ 68