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महाकवि भूधरदास : आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार :- “प्रबन्ध काव्य में मानव जीवन का पूर्ण दृश्य होता है। उसमें घटनाओं की सम्बद्ध श्रृंखला और स्वाभाविक क्रम से ठीक ठीक निर्वाह के साथ साथ हृदय को स्पर्श करने वाले नाना भावों का रसात्मक अनुभव कराने वाले प्रसंगों का समावेश होना चाहिए। उसके लिये घटनाचक्र के अन्तर्गत ऐसी वस्तुओं और व्यापारों का प्रतिबिम्बवत् चित्रण होना चाहिए, जो श्रोताओं के हृदय में रसात्मक तरंगे उठाने में समर्थ हो।" ।
डॉ. नगेन्द्र ने महाकाव्य में "औदात्य" को प्रधान मानते हुए उदात्त कथानक, उदात्त कार्य अथवा उद्देश्य, उदात्त चरित्र, उदात्त भाव और उदात्त शैली को अनिवार्य बतलाया है।
डॉ. शम्भूनाथसिंह ने भारतीय और पाश्चात्य महाकाव्य विषयक मान्यताओं का समन्वय करते हुए महाकाव्य के आन्तरिक और बाह्य लक्षणों का प्रतिपादन किया है -
आन्तरिक लक्षण :1. महाकाव्य में किसी महान घटना का वर्णन होना चाहिए। उसके
कथानक में नाटकीय अन्विति हो तो ठीक है, न हो तो भी उसे रोमांचक
कथा की तरह विश्रृंखलित नहीं होना चाहिये। 2. उसमें कोई न कोई महान उद्देश्य होना चाहिये, चाहे वह उद्देश्य राष्ट्रीय
हो या नैतिक, धार्मिक हो या दार्शनिक, मानवीय हो या मनोवैज्ञानिक। 3. उसमें प्रभावन्विति होनी चाहिये, चाहे वह नाटकीय ढंग की प्रभावान्विति
हो या रोमांचक कथा के ढंग की अथवा नीतिकाव्य के ढंग की। बाह्य लक्षण :
कथात्मकता और छन्दोबद्धता। 2. सर्गबद्धता या खण्डविभाजन और कथा का विस्तार।
3. जीवन के विविध और समग्र रूप का चित्रण । 1. जायसी ग्रन्थावली की भूमिका आचार्य रामचन्द्र शुक्ल 2. “कामायनी का महाकाव्यत्व" डॉ. नगेन्द्र 3. साहित्य शास्त्र, प्रो. रामकुमार शर्मा पृष्ठ 179--180