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एक समालोचनात्मक अध्ययन
4. चारों वर्गों की स्वीकृति मिलनी चाहिए। 5. नायक चतुर एवं उदात्त होना चाहिये। 6. नगर, समुद्र, पर्वत, ऋतु, सूर्योदय, सूर्यास्त, उपवन, जलक्रीड़ा आदि के
वर्णनों से महाकाव्य शोभित होना चाहिए।'
इसके पश्चात् रूद्रट', अग्निपुराणकार', हेमचन्द्र और विश्वनाथ 'आदि अनेक संस्कृत विद्वानों ने महाकाव्य के लक्षण बतलाये हैं, जो सभी लगभग मिलते जुलते हैं। उन सभी के आधार पर महाकाव्य के सामान्य लक्षण निम्नलिखित हैं :
1. महाकाव्य सर्गबद्ध होना चाहिये और न्यूनतम आठ सर्ग होना चाहिये । ... महाकाव्य का धायक विचार अथम देवता लेना चाहिये । 3. महाकाव्य की रचना विभिन्न छन्दों में होना चाहिये। 4. महाकाव्य की कथा इतिहास या पुराण सम्मत होना चाहिये। 5. श्रृंगार, वीर और शान्त रस में से कोई एक रस अंगी हो तथा शेष
रस गौण हो । प्रकृति वर्णन के रूप में नगर, समुद्र, नदी, पर्वत, सूर्योदय, सूर्यास्त आदि का वर्णन होना चाहिये।
महाकाव्य की शैली गम्भीर होना चाहिये । 8. महाकाव्य का उद्देश्य महान होना चाहिये।
हिन्दी विद्वानों की दृष्टि में महाकाव्य का स्वरूय :- आधुनिक युग में हिन्दी के विद्वानों ने भी महाकाव्य के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किये हैं। इन विद्वानों ने लक्षणग्रन्थों के परम्परागत मानदण्डों से अलग हटकर महाकाव्य विषयक मान्यताएँ प्रस्तुत की हैं, जिनमें पर्याप्त विकास दृष्टिगोचर होता है। कुछ प्रमुख मान्यताएँ इस प्रकार हैं :
1. काव्यादर्श 1 - 15, 19, 37 दण्डी 2. काव्यालंकार 16-7,7-19 रूद्रट 3. अग्निपुराण 338, 24-34 4. साहित्य दर्पण 6, 315-318 विश्वनाथ