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महाकवि भूघरदास :
15. भूपालचतुर्विशति भाषा :- यह संस्कृत के भूपालराय कवि द्वारा रचित “जिन चतुर्विंशतिका” का देश भाषा में अनुवाद है। अनुदित रचना में आरम्भ का मंगलाचरण का दोहा तथा अन्य का भूपालराय के प्रति आभार प्रकट करने वाला छप्पय छन्द मूल संस्कृत कृति में नहीं है । इसमें 48 चौपाई, 5 दोहा और 1 छप्पय कुल 54 छन्द हैं । इस रचना में “जिनचतुर्विंशतिका" के एक श्लोक के लिए 2 चौपाइयों या 2 दोहा छन्दों का क्रमश: प्रयोग किया गया है। यह प्रकाशित और अप्रकाशित दोनों रूपों में उपलब्ध है। इसमें जैन धर्मानुसार 24 तीर्थंकरों की वन्दना की गई है। समस्त कृति में अपने आराध्य के प्रति विनय-भाव व्यक्त किया गया है। कवि ने जन भाषा में मूल कृति का अनुवाद मात्र किया है, जिसमें उसे पर्याप्त सफलता मिली है। अनुवाद की परम्परा में कवि ने रीतिकालीन परम्परा का उपयोग किया है । छप्पय जैसे छन्द का व्यवहार भी पुरानी परम्परा को गति प्रदान करता है। ___16. बारह भावना :- भूधरदास ने अपने महाकाव्य “पार्श्वपुराण" में प्रसंगानुसार दो स्थानों पर व्यवहारपरक और निश्चयपरक दृष्टि से दो बारह भावनायें लिखी है । ये बारह भावनाएं वस्तुत: “पार्श्वपुराण" का अंश हैं, परन्तु अधिक लोकप्रियता के कारण ये पृथक्-पृथक् कई संग्रहों में संग्रहीत की गई
बार-बार चितवन करने को भावना कहते हैं। संसार, शरीर एवं भोगों से विरक्ति के लिए इनका विशेष महत्व है। अनित्य, अशरण, संसार, एकत्व, अन्यत्व, अशुचि, आस्वच, संवर, निर्जरा, लोक बोधिदुर्लभ और धर्म - ये बारह भावनाएँ हैं। इन बारह भावनाओं को लिखने की परम्परा प्राचीन जैनाचार्यों द्वारा प्राकृत और संस्कृत से होती हुई हिन्दी जैन कवियों को प्राप्त हुई है। 1(क) प्रकाशिव - वृहद् जिनवाणी संग्रह. सं. पं. पन्नालाल नाकलीवाल, 16 वां सम्राट
संस्करण, पृष्ठ 639-641 (ख) अप्रकाशित शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन मन्दिर, संघीजी, जयपुर वेष्टन क्र. 895 2. पावपुराण - भूधरदास, अधिकार 4 पृष्ठ 30 तथा अधिकार 7 पृष्ठ 64 3. वही पृष्ठ 30 तथा 64 4. आचार्य कुन्दकुन्द, वहकर स्वामी, कार्तिकेय स्वामी, शुभचन्द्र आदि ।