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एक समालोचनात्मक अध्ययन
है ।' जहाँ यह एक ओर विभिन्न संग्रहों में संग्रहीत है वहाँ दूसरी ओर पृथक् रूप से भी प्रकाशित है।
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यह रचना पाँच जकड़ी छन्दों में पूर्ण हुई हैं। इसमें कवि द्वारा मन को सम्बोधित करते हुए वैराग्य भावना, कर्म और उनके फल, जैन धर्म की महिमा आदि का वर्णन हुआ है। यह कृति हिन्दी सन्त कवियों की तरह धार्मिक महत्व को सूचित करती है।
13. होली :- कवि द्वारा रचित "अरे दोऊ रंग भरे खेलत होरी " तथा "होरी खेलूँगी घर आये चिदानन्द” इन शब्दों से प्रारम्भ होने वाली दो होलियाँ प्रकाशित रूप से उपलब्ध हैं। ये रचनाएँ विभिन्न पद संग्रहों में भी संग्रहित है। होली एक काव्य रूप हैं।' इस काव्य का प्रयोग जैन एवं जैनेतर साहित्य में हुआ है । कवि द्वारा रचित होलियों में आध्यात्मिक दृष्टि को ध्यान में रखकर होली के उत्सव में प्रयुक्त उपकरणों को सांगरूपक के रूप में व्यक्त किया गया है । साथ ही चिदानन्द कन्त के साथ होली खेलने से प्रिय वियोग के समाप्त होने का उल्लेख किया गया है
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14. जिनगुणमुक्तावली :- जिनगुणमुक्तावली कवि की एक लघु किन्तु भक्तिभावना पूर्ण अप्रकाशित कृति है। यह कृति 23 पन्द्रह मात्रा वाली चौपाइयों, 16 दोहों और 2 सोरठा छन्दों में रची गई है। इस कृति में जिनेन्द्र भगवान के गुणों की विशेष चर्चा हुई है। यह चर्चा भगवान जिनेन्द्रदेव के पूज्य परिजनों से लेकर भगवान के कुल, जन्म, शरीर, तप, केवलज्ञान और धर्मदेशना तक के अतिशयों पर आधृत है। इसमें भक्त की भक्ति भावना का पूर्ण उद्रेक दिखाई देता है ।
1. (क) प्रकाशित - वृहद् जिनवाणी संग्रह- सं. पं. पन्नालाल बाकलीवाल, 16 वाँ सम्राट संस्करण, पृष्ठ 639-641 सन् 1952
(ख) राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान शाखा बीकानेर के गुटका सं 6766 में संग्रहीत 2. हिन्दी पद संग्रह- सं. डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, प्रकाशक- महावीर भवन, जयपुर पृष्ठ 149 तथा हिन्दी 158-59 सन् 1956
3. हिन्दी साहित्य कोश, भाग 1, डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, द्वितीय संस्करण, प्रकाशक- ज्ञान मंडल वाराणसी, पृष्ठ 979
4. ऋषभदेव सरस्वती सदन, उदयपुर गुटका नं. 2155