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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 175 भूधरदास द्वारा रचित बारह भावनायें इसी परम्परा की एक कड़ी है जो सर्वाधिक प्रसिद्धि को प्राप्त है। इनका विशेष विवेचन धार्मिक विचारों के अन्तर्गत किया ___17. सोलहकरण भावना :- “सोलहकरण भावनाएँ" भूधरदास ने "पार्श्वपुराण" के अन्तर्गत लिखी है, परन्तु कई संग्रहों में यह पृथक् रूप से भी प्रकाशित हुई हैं। ये भावनाएँ मुनिराजों द्वारा भाने योग्य हैं । दर्शन विशुद्धि, विनय सम्पन्नता, शील और व्रतों में अतीचार न लगाना, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग, संवेग, यथाशक्ति तप, यथाशक्ति त्याग, साधु समाधि, वैयावृत्य, अर्हद्भक्ति, आचार्य भक्ति, बहुश्रुत भक्ति, प्रवचनभक्ति, आवश्यकापरिहाणि, मार्गप्रभावना और प्रवचन वत्सलता - इन सोलह कारण भावनाओं के भाने से तीर्थकर प्रकृति का बंध होता है। व्यक्ति को धार्मिक बनाने में इन भावनाओं का अति महत्त्व होता है। 18. वैराग्य भावना :-"वैराग्य भावना" वज्रनाभि चक्रवर्ती द्वारा संसार, शरीर और भोगों से विरक्ति हेतु “पार्श्वपुराण" के अन्तर्गत भायी गई भावना है। संसार, शरीर और भोगों का स्वरूप जानकर वज्रनाभि वैराग्य धारण कर लेते हैं। इस रचना में 2 दोहे तथा 15 जोगीरासा छन्द हैं। यह प्रकाशित और अप्रकाशित दोनों रूपों में उपलब्ध है। पार्श्वपुराण का अंश होकर भी इसका प्रकाशन विविध संग्रहों में “वज्रनाभि चक्रवर्ती की वैराग्य भावना” अथवा “वैराग्य भावना" नाम से हुआ है । भाव एवं भाषा की दृष्टि से इसकी रचना अनुपम 19. बाबीस परीषह :- वस्तुतः यह कवि की पृथक् रचना नहीं है, अपितु पार्श्वपुराण का ही अंश है; परन्तु मार्मिक एवं भावपूर्ण होने के कारण इसका 1, पार्श्वपुराण - भूधरदास अधिकार 4 पृष्ठ 35-36 2. वृहद जिनवाणी संग्रह- सं. पं. पन्नालाल बाकलीवाल, पृष्ठ 569-72 सं 16 वाँ सम्राट संस्करण सन् 1952 3. पावपुराण - भूधरदास, अधिकार 3 पृष्ठ 17-18 4. पाचपुराण - भूधरदास, अधिकार 4 पृष्ठ 32-34
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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