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महाकवि भूधरदास : (ग) दर्शन स्तोत्र :- जिनेन्द्र भगवान के दर्शन की महत्ता को सूचित करने वाला यह स्तोत्र, स्तोत्र परम्परा की महत्वपूर्ण कृति है । इसे कवि ने पद्मनंदि के स्तोत्र के अनुवाद की तरह प्रस्तुत किया है। इसमें दोहा और चौपाई मिलाकर कुल 4 छन्द हैं । भक्त भगवान के दर्शन करके अपने को धन्य और कृतकृत्य अनुभव करता है और अपने प्रभु को सर्वश्रेष्ठ मानता है - यह भाव इसमें समाया हुआ है।
3.आरतियाँ :- कवि भूधरदास द्वारा रचित "पंचमेरु की आरती" "संध्या समै की आरती” एवं “नाभिनन्द की आरती" - ये तीन आरतियाँ विभिन्न शास्त्र भण्डारों में उपलब्ध हुई हैं। इनमें “नाभिनन्द की आरती" पदसंग्रह के पद 68 के रूप में भी प्रकाशित हो गई है। ये आरतियाँ एक तरह से भक्त्यात्मक गीत ही हैं । गीत पद्धति में रची हुई आरती का व्यवहार कीर्तन की तरह होता है । साकार उपासना के कारण आरती काव्य अति लोकप्रिय हुआ है।
4.अष्टक सालय :. आर स्लोको माला लोक या काळ अहत कहलाता है । यह संख्याश्रित मुक्तक काव्य की श्रेणी में आता है । साकार उपासना में
अष्टकों का अति लोकप्रिय स्थान रहा है । भूधरदास के कुल 5 अष्टक प्राप्त हुए हैं; उनमें 2 अष्टक नेमिनाथ के, 1 अष्टक महावीर का, 1 अष्टक पार्श्वनाथ का तथा 1 अष्टक सामान्यत: जिनेन्द्रदेव का है। इसमें तत्सम्बन्धी भगवानों की स्तुति की गई है । ये सभी अष्टक उनकी वन्दना या उपासना सम्बन्धी हैं। इनमें पूर्ववर्ती कवियों का प्रभाव भी दृष्टिगत होता है। इनमें से कुछ अष्टक पदसंग्रह में भी प्रकाशित हैं तथा कुंछ पृथक् रूप से भी उपलब्ध हैं।
5.निशिभोजन जन कथा :- रात्रि भोजन के दोषों को निरूपित करने वाली यह कवि की अनुपम रचना है। इसमें 10 चौपाइयाँ, 6 दोहों, 2 सोरठों तथा । छप्पय- कुल 19 छन्दों द्वारा कवि ने रात्रि भोजन के कारण प्राप्त दुःखों का वर्णन किया है। इसकी प्रकाशित और अप्रकाशित दोनों ही प्रकार की 1. राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान,शाखा बीकानेर के गुटका सं.6766 2. जैन पद संग्रह, तृतीय भाग - भूषरदास, पद 68 जैन मन्थ रत्नाकर, बम्बई 3. हिन्दी विश्वकोष भाग 2 नगेन्द्रनाथ वसु ,पृष्ठ (644 सन् 1917 कलकता 4, हिन्दी विश्वकोश पाग 2 . नगेन्द्रनाथ बसु , पृष्ठ 382 सन् 1917 कलकचा 5. वृहद् जिनवाणी संग्रह सं पं. पन्नालाल बाकलीवाल, 16वाँ सम्राट संस्करण पृष्ठ 639-641 6. राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, शाखा बीकानेर के गुटका सं. 6766