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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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उपर्युक्त शब्दों से प्रारम्भ होने वाली विनतियों में भगवान के प्रति भक्त की सातिशय भक्तिभावना का उल्लेख हुआ है । ये विनतियाँ आज भी भक्त कण्ठों से गुंजायमान होती हैं।
2. स्तोत्र:- किसी देवता का छन्दोबद्ध स्वरूपकथन या गुणकीर्तन अथवा स्तवन स्तोत्र कहलाता है ।' भूधरदास ने पार्श्वनाथ स्तोत्र, एकीभाव स्तोत्र और दर्शन स्तोत्र ये तीन स्तोत्र लिखे हैं ।
( क ) पार्श्वनाथ स्तोत्र :- पार्श्वनाथ स्तोत्र कवि की महत्वपूर्ण रचना है। इसमें 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ की स्तुति की गई हैं। यह स्तोत्र 3 दोहों और 29 चौपाइयों में पूर्ण हुआ है। यह सरल हिन्दी में रचा गया है। इसमें भाषा की संस्कृतनिष्ठता नहीं है। डॉ. प्रेमसागर जैन के अनुसार इसमें स्तोत्र एवं स्तुति का मिला-जुला रूप मिलता है । कवि ने इसकी रचना करके स्तोत्र की नव्य और विकसित परम्परा में महत्वपूर्ण योग दिया है।
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(ख) एकीभाव स्तोत्र :- यह वादिराज मुनिराज द्वारा रचित एकीभाव स्तोत्र का देशभाषा में अनुवाद है । यह अनुवाद वादिराज की संस्कृत भाषा और भाव के अनुसार ही हुआ है । इस रचना में 2 दोहे और 26 रोला छन्द
| अन्तिम रोला छन्द जिसमें भूधरदास द्वारा मुनि वादिराज की स्तुति की गई है, वह वादिराजप्रणीत मूल स्तोत्र में नहीं है। यह स्तोत्र प्रकाशित और हस्तलिखित दोनों रूपों में उपलब्ध है। इसमें तीर्थंकर की वन्दना की गई है। कवि भगवान को ज्योति स्वरूप मानकर उसे अपने अज्ञानान्धकार का दूर करने वाला मानता हैं -
तुम जिन ज्योति स्वरूप दुरित अंधियार निवारी | सो गणेश गुरु कहैं तत्व विद्या धन धारी ॥ मेरे चित घर माहिं वसो तेजो मय यावत । पाप तिमिर अवकाश तहां सो क्योंकर पावत ॥
1. हिन्दी साहित्य कोश भाग 1, धीरेन्द्र वर्मा, पृष्ठ 945, द्वितीय संस्करण, काशी 2. हिन्दी जैन भक्ति काव्य एवं कवि, डॉ. प्रेमसागर जैन, पृष्ठ 345 3. एकीभाव स्तोत्र भाषा, भूधरदास, रोला सं. 1