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महाकवि भूधरदास :
विभिन्न फुटकर रचनाएँ (मुक्तक काव्य )
1. विनतियाँ - भूधरदास ने अनेक विनतियाँ लिखी हैं इनमें से कुछ विनतियाँ पद संग्रह में संग्रहीत हैं और कुछ पृथक्-पृथक् प्रकाशित हुई हैं। विनती के अनुनय, विनय, नम्रता आदि अनेक अर्थ हैं। इसमें श्रद्धेय के प्रति विशिष्ट सम्मान प्रदर्शित करते हुए अपने अपराधों की क्षमा माँगी जाती है और
आराध्य के प्रति नम्रता भी प्रगट की जाती है। यह मूलत: कवि की भावाभिव्यक्ति होती है। कवि भूधरदास द्वारा रचित प्रकाशित और अप्रकाशित विनतियाँ 12 हैं, जिनका परिचय इसप्रकार है
1. अहो जगत गुरु देव इत्यादि। 2. त्रिभुवन गुरु स्वामीजी इत्यादि।' 3. आवोजी भावो सब मिली जिन चैत्यालय चालाजी इत्यादि। 4. अहो वनवासी पीया इत्यादि। 5. ते गुरु मेरे उर वसो इत्यादि। 6. वंदों दिगम्बर गुरु चरण इत्यादि।' 7. वा संसार सार बिच इत्यादि। 8. अरे जीव आतम ज्ञान विचार इत्यादि।" 9. विनती नेमीश्वर की इत्यादि।" 10. पुलकत नयन चकोर पक्षी, हंसत उर नन्दीवरो इत्यादि।" 11. पारस प्रभु को नाऊं सार सुधारस जगत में इत्यादि।।
12. जे जगपूज परमगुरु नामी, पतित उधारन अंतरजामी।" 1. हिन्दी विश्वकोश पाग 21 सं. नगेन्द्रनाथ वसु, पृष्ठ 416 कलकत्ता 1930 2. वृहद् जिनवाणी संमह- सं पं. पन्नालाल बाकलीवाल,16 वां संस्करण किशनगढ़ पृष्ठ 530 3. वृहद् जिनवाणी संग्रह- सं पं. पन्नालाल बाकलीवाल,16 वाँ संस्करण किशनगढ़ पृष्ठ 530 4. आमेर शास्त्र भण्डार जयपुर गुटका नं. 122 पृष्ठ 7 5. वही गुटका नं. 107 पत्र 13-14 6. शास्त्र भण्डार, नया मन्दिर, दिल्ली 7. वही
8. वहीं 9. अषभदेव सरस्वती सदन, उदयपुर 10. राजस्थानी प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, शाखा बीकानेर के गुटका सं.6766 11. से 13. जैन पद संग्रह, भूधरदास, तृतीय भाग, प्रकाशक जैन मन्थ रत्नाकर, बम्बई