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________________ महाकवि पूश्वरदास : एक अभिमत डॉ. रामदीन मिश्र एम.ए., डी.लिट भूतपूर्व अध्यक्ष एवं प्रोफेसर हिन्दी विभाग, पटना विश्वविद्यालय, पटना मैंने इस शोध प्रबन्ध को आद्यन्त पढ़ा है और पाया है कि यह एक मौलिक एवं उपयोगी शोधकार्य है । सन्तकाव्य भक्तिकालीन हिन्दी साहित्य की एक शाखा मात्र ही नहीं है वरन् यह आध्यात्मिक चिन्तन और साहित्य की एक प्रवृत्ति है; जो सिद्धों-नाथों से लेकर अद्यावधि प्रवहमान रही है । महाकवि भूधरदास इसी परम्परा की एक कड़ी है। यह बात और है कि वे जैनधर्म के अनुयायी थे और उनकी रचनाएँ जैन सिद्धान्तों, विश्वासों और आचरण की पोषक है किन्तु इससे उनका साहित्यिक महत्त्व कम नहीं हो जाता।। शोधकर्ता ने महाकवि भूधरदास के साहित्यिक अवदान का हिन्दी सन्त साहित्य सन्दर्भ में एक समालोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करने का महत्वपूर्ण कार्य किया है । भूधरदास का समय विक्रम की अठारहवीं शती के उत्तरार्द्ध से विक्रम की उन्नीसवीं शती के प्रथम दो दशकों तक अनुमानित है । हिन्दी साहित्य के इतिहास में यह समय रीतिकाल का है, जिसके अन्तर्गत महाकाव्य की कोई उल्लेखनीय रचना नहीं मिलती। भूधरदास ने अपनी रचना 'पावपुराण' के द्वारा इस काल की इस कमी को पूरा किया है। इसीप्रकार अपनी रचना 'चर्चा समाधान' के द्वारा भूधरदास ने हिन्दी गद्य के क्षेत्र में योगदान दिया है। वार्ता साहित्य के बाद यह रचना ब्रजभाषा गद्य के अत्यन्त प्रौढ़ रूप का उदाहरण प्रस्तुत करती है। इन दोनों कारणों से भूधरदास का हिन्दी साहित्य के विकास में अन्यतम योगदान है जो अभी तक सम्बद्ध विद्वानों की आँखों से ओझल था। लेखक ने भूधर साहित्य के इस पक्ष का उद्घाटन कर निश्चय ही एक स्तुत्य कार्य किया है। तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए लेखक ने सन्तकाव्य एवं भूधरदास की रचनाओं के साम्य और वैषम्य पर प्रकाश डाला है। चूंकि भूधरदास भी सन्त परम्परा के ही कवि थे; अत: दोनों में अनेक समताओं का होना स्वाभाविक है। पुन: चूंकि दोनों के आध्यात्मिक विश्वास अलग-अलग स्रोतों से विकसित हुए; अत: विषमता का होना उतना ही अनिवार्य है। शोधकर्ता ने सभी सम्बद्ध तथ्यों का विधिवत् विश्लेषण-विवेचन कर उपयुक्त एवं विश्वसनीय निष्कर्ष निकाले है। विवेचन में यथोचित शोध-प्रविधि का अवलम्बन लिया गया है। यह शोध प्रबन्ध प्रकाशन के सर्वथा उपयुक्त है। . सभी दृष्टियों से मेरे विचार में यह एक मौलिक कार्य है और हिन्दी शोध के क्षेत्र में एक निश्चित अवदान है।
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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