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________________ :57 एक समालोचनात्मक अध्ययन पार्श्वनाथ तीर्थंकर होने के नौ भव पूर्व पोदनपुर नगर के राजा अरविन्द के मन्त्री विश्वभूति के पुत्र थे । उस समय उनका नाम मरुभूति तथा इनके बड़े भाई का नाम कमठ था। विश्वभूति के दीक्षा लेने पर जब मरुभूति राजा का मन्त्री बन गया और राजा अरविन्द के द्वारा राजा बज्रकीर्ति पर चढ़ाई किये जाने पर युद्ध क्षेत्र में साथ गया तब कमठ ने नगर में उपद्रव मचाया तथा छोटे भाई मरुभूति की पत्नी के साथ दुराचार किया। जब राजा शत्रु को परास्त कर नगर में आया तब कमठ के कुकृत्य की बातें सुनकर उसे बड़ा दुःख हुआ। उसने कमठ का मुँह काला करके गधे पर बैठाकर सारे नगर में घुमाया और नगर की सीमा के बाहर कर दिया। आत्मप्रताड़ना से पीड़ित कमठ भूताचल पर्वत पर जाकर तपस्वियों के साथ रहने लगा। कमठ के इस समाचार को प्राप्त कर मरुभूति भूताचल पर्वत पर गया और कमठ से क्षमा माँगी परन्तु कमठ ने क्रोध में आकर हाथ में ली हुई पत्थर की शिला मरुभूति के ऊपर पटक कर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद कवि ने मरुभूति और कमठ के आठ जन्मों की कथा अंकित की है, जिसमें प्रत्येक जन्म में कमठ का जीव वैर द्वारा मरुभूति के जीव से प्रतिकार लेता रहा ! मरुभूति के आठ भव क्रमश: बज्रघोष हाथी, बारहवें स्वर्ग में शशिप्रभदेव, अग्निदेव पुत्र, सोलहवें स्वर्ग में देव, बज्रनाभि चक्रवती. मध्यम प्रैवेयक में अहमिन्द्र, आनन्द राजा, आनत स्वर्ग में इन्द्र बतलाये हैं। कमठ के जन्म क्रमश: काला सर्प, पाँचवें नरक का नारकी, अजगर, छठवें नरक का नारकी, कुरंग भील, पाँचवें नरक का नारकी, सिंह, पाँचवें नरक का नारकी निरूपित किये हैं। नौवें जन्म में मरुभूति का जीव काशी के राजा विश्वसेन के यहाँ पार्श्वनाथ के रूप में जन्म लेता है तथा कमठ का जीव नरक से निकलकर कुछ अन्य जन्म धारण कर बाद में पार्श्वनाथ का नाना बनता है । पार्श्वनाथ आजन्म ब्रह्मचारी रहकर आत्मसाधना करते रहे। पार्श्वनाथ का नाना कुतप करके “संवर" नाम का ज्योतिषी देव बन जाता है और पार्श्वनाथ की साधना में विघ्न करता है। पार्श्वनाथ अपनी साधना से विचलित नहीं होते हैं और पूर्ण वीतरागी एवं पूर्ण ज्ञानी बन जाते हैं। तीर्थंकर बनकर वे प्राणियों को धर्मोपदेश देते हैं और अन्त में सौ वर्ष की आयु पूर्णकर सम्मेदशिखर पर्वत से निर्वाण प्राप्त करते हैं।
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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