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________________ 156 महाकवि भूधरदास : कहा मानगिरि चढ़ि रहे, उतरो बलि जाऊँ। चर्चा निर्णय अन्थ यह भेंट तुम्हारे नाऊँ । राति दिवस चिन्तन कियो, विविध ग्रन्थ को भेव। देखि दीन का श्रम अधिक, दया दक्षिणा देव ।। जिनमत महल मनोग अति, कलियुग छादित पंथ । ताकि मोल पिछानियो, चर्चा निर्णय ग्रन्थ ॥ चर्चा निर्णय को पढ़त, बहुत भ्रांति मिटि जाइ। हठनाही हठ पर रहैं, सो इलाज कहूं नाइ ।। दिवस दिवाकर ऊगवै सबही को श्रम आय। अधिक अंधेरो घूधूकैं, ताको कौन उपाय ।। सर्वकथन को मञ्चन इह जिनमत मर्म पिछान। जैन धरम जग कल्पतरु सेवो संत सुजान ।। सेवा श्री जिनधर्म की, करै सकल शुभ श्रेय । पय की दाता गाय ज्, दोहण हार कू देय ।। जैन धर्म दुर्लभ जग माहि विन सेवै शिवदायक नाहि । समझि सोच उर देखो भले, कोठे घरे धाण नहि फलै ॥ अन्त में अवसान मंगल भी दिया गया है - देवराज पूजित चरण, असरण शरण उदार। चहू संघ मंगलकरण, प्रियकारिणी कुमार ।। इस प्रकार “चर्चा समाधान" ग्रन्थ जैन धर्म एवं दर्शन की कई महत्त्वपूर्ण चर्चाओं के समाधानों को अपने में समाहित किए हुए है। : पद्य साहित्य : पार्श्वपुराण महाकाव्य :- पार्श्वपुराण जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है. इसमें तेईसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ के चरित्र का निरूपण किया गया है । पार्श्वनाथ के चरित्र की कथा बड़ी ही रोचक एवं उपदेशात्मक है। वैर की परम्परा प्राणियों में जन्म जन्मान्तरों तक किसप्रकार चलती है, यह इसमें अच्छी तरह से बतलाया गया है।
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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