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महाकवि भूधरदास : पद्य में भूधरदास अपने इस ग्रंथ का नाम “चरचा निर्नय" लिखते हैं।' जबकि गद्य में वे इसे “चर्चा समाधान" लिखते हैं। वस्तुतः इसकी प्रसिद्धि "चर्चा-समाधान" नाम से ही है।
सभी चर्चाओं के समाधान के बाद वे गुणग्राही सज्जनों से पुन: निवेदन करते हैं - इहा एक गुणग्राही सज्जन तैं मेरी अरदास है। प्रथम आरम्भविौं भी करी है। अब फेरि करूँ हूँ। यह चरचा समाधान नाम ग्रन्थ मान बढ़ाई के आशय सं अथवा अपनी प्रसिद्धि बढ़ावने • तथा वचन के पक्ष सौं नाहीं लिखा है यथावत् श्रद्धान के निमित्त शास्त्र की साख सो लिखा है। जो चर्चा मन में
आ ते माननी, नाहीं आवै तहां मध्यस्थ होई मुझपै क्षमाभाव करने। शास्त्र विरोधी वचन का फल मुझे होइगा, तुम्हें अपनी सज्जनता की मर्यादा न छोड़नी । आगै बड़ों ने द्वेषी अपराधी जीवों को भी आशीर्वाद दीना है। तथाहि गाथा -
दुज्जग सुही य होऊ अंगे सुया पयासि जेण।
अमियविसंहवा सरित मही मीमरण उच्चेण ।' आगे जैनशास्त्रों का उपकार एवं शास्त्राभ्यास की महिमा बतलाते हुए कहते हैं - "इस पंचमकाल में जैन के शास्त्र बड़े उपकारी हैं। यावत् काल इनका अवगाहन रहै तावत् ज्ञान का प्रकाश होय । इन्द्रियों का अवरोध होय । जैस सूर्य के उदय उद्योत होय अर घु घू नाम जीव अंध हो जाय है। तिसतें शांत भावसों निरन्तर शास्त्राभ्यास करना सर्वथा जोग्य है । एक अठारह अक्षरमायें प्रबोधसार नाम ग्रन्थ है। तहां यू कह्या है -
श्रुतबोध प्रदीपेन शासनं वर्तते अधुना।
बिना श्रुत प्रदीपेन सर्व विश्वं तमोमयं ॥ समस्त शास्त्रों का सार बतलाते हुए भूधरदास लिखते हैं कि - "जितने जैन के शास्त्र हैं, तिन सबका सार इतना ही है - व्यवहार करि पंचपरमेष्ठी की
1, (क) जैनसूत्र की साखसौ,स्वपर हेतु उर आन ।
चरचा निर्नय लिखत है, कीजो पुरुष प्रधान || --चर्चा समाधान पृष्ठ 4 (ख) जिनमत महल मनोग अति, कलियुग छादित पंथ ।
ताकि मोल पिछानियों, चर्चा निर्नय ग्रन्थ ।।--- चर्चा समाधान पृष्ठ 4 (ग) चर्चा निर्नय को पढ़त, बहुत प्रोति मिटि जाई।
हठयाही हठ पर रहै, सो इलाज कहुं नाई || - चर्चा समाधान पृष्ठ 4 2. (क) इह चर्चा समाधान ग्रन्थ विर्षे. चर्चा समाधान पृष्ठ 4 (ख) चर्चा समाधान पृष्ठ 4 3. चर्चा समाधान, घरदास कलकत्ता पृष्ठ 121 4. वही पृष्ठ 122