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एक समालोचनात्मक अध्ययन
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नीतिसार, आशावरकृत यत्याचार, धर्मामृत सूक्तिसंग्रह, पुरुषार्थसिद्धयुपाय अमृतचन्द्राचार्यकृत, योगेन्द्रदेवकृत श्रावकाचार, सामायिक टीका, व्रतकथाकोष, धर्माकृत श्रावकाचार, ज्ञानार्णव, भगवती आराधना, लघुचारित्रसार, क्रियासार सकलकीर्तिकृत धर्मप्रश्नोत्तर श्रावकाचार, आत्मानुशासन द्वादशानुप्रेक्षा, राजमल्ल कृत श्रावकाचार, समाधितंत्र टीका आदि।।
द्रव्यानुयोग सम्बन्धी ग्रंथ - तत्वार्थसूत्र, ब्रह्मविलास, स्वामीकार्ति केयानुप्रेक्षा की टीका, सर्वार्थसिद्धि, ज्ञानप्राभृत या ज्ञानपाहुड, कुंदकुंददेव कृत प्रवचनसार, तत्त्वदीपिका टीका, समयसार नाटक, तत्त्वार्थसार अमृतचन्द्रकृत, रयणसार कुन्दकुन्दकृत, न्यायकुमुदचन्द्रोदय, राजवार्तिकालंकार, द्रव्यसंग्रह, षट्पाहुड टीका, निदरकार, भावपाड, वीरसग समनखार देवसेनकृत भावसंग्रह तथा वामदेवकृत भावसंग्रह, पद्मनंदिपच्चीसी, दर्शनसार, परमात्मप्रकाश, योगसार तत्त्वार्थसूत्र की श्रुतसागरी टीका, तत्त्वार्थवृत्ति आदि।
उपर्युक्त लगभग 85 ग्रन्थों को भूधरदास ने विभिन्न चर्चाओं के समाधान हेतु उद्धृत किया है। किसी एक चर्चा के समाधान हेतु भी अनेक ग्रन्थों को प्रमाण हेतु प्रस्तुत किया गया है। उदाहरणार्थ -
चर्चा 60 - मुनिराज शास्त्रादि उपकरण राखें कि नाहीं।
समाधान- “वसुनंदी सिद्धान्त चक्रवर्तीकृत मूलाचार, वीरनंदी सिद्धांतीकृत आचारसार, चामुण्डरायकृत चारित्रसार, शिवकोटि मुनीश्वरकृत भगवती आराधना, लघुचारित्रसार, कुन्दकुन्दाचार्यकृत प्रवचनसार, रयणसार, नियमसार, भावपाहुड़ तथा वीतराग समयसार, देवसेनकृत भावसंग्रह तथा वामदेवकृत भावसंग्रह, पद्मनन्दिपच्चीसी, ज्ञानार्णव, दर्शनसार क्रियासार, तत्त्वार्थसार, परमात्मप्रकाश, योगसार, सूत्र की टीका - सर्वार्थसिद्धि, श्रुतसागरी तत्त्वार्थवृत्ति, सकलकीर्तिकृत धर्मप्रश्नोत्तर, श्रावकाचार ग्यारहसै छयासठ प्रश्न संयुक्त है, तत्वार्थसार टीका, आत्मानुशासन, आशाधरकृत यत्याचार, आदिपुराण पद्मपुराण, यशस्तिलककाव्य चम्पूनामा, कर्मकांड की टीम, पंचपरमेष्ठी की टीका, यशोनन्दिकृत पूजा पाठ, पद्यनंदिकृत रलवयपाठ, स्वामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा टीका, द्वादशानुप्रेक्षा तथा स्वामीकार्तिकेय कथा, समन्तभद्रकथा, भद्रबाहुकथा श्रेणिकचरित्र, अभव्यसेन का प्रसंग कुन्दकुन्दाचार्य के पंचनाम हेतु कथा, सूत्र के पाठ की फलस्तुति, राजमल्लकृत श्रावकाचार, ढोलसागर कथा, वृहत् प्रतिक्रमण, समाधितंत्र टीका, वचनकोश, भाषा साधुवंदना इत्यादि प्राकृत संस्कृत भाषा रूप अनेक जैनग्रन्थनि विर्षे कहा सो प्रमाण है।"
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