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________________ 127 एक समालोचनात्मक अध्ययन होने की तीव्र इच्छा रखते थे; इसीलिए निर्ग्रन्थ दशा होने के क्षण पर वे बलिहारी होते हैं। विरक्त :- भूधरदास नैतिक, सदाचारी, धार्मिक होने के साथ -साथ संसार, शरीर और भोगों के प्रति विरक्त भी हैं । वैराग्य प्राप्ति के लिए वे अति सचेष्ट हैं, इसीलिए बारम्बार बारह भावनाओं का चिन्तन करते हैं तथा संसार - शरीर- भोगों के स्वरूप का विचार करते हैं। अन्तत: भावना माते हैं कि - कब गृहवास सौ उदास होय वन सेऊ देऊ निजल्य गति रोकू मन करी की। रहि हो अडोल एक आसन अचल अंग सहि हो परीसा शीत-घाम-पेप-मरीकी ।। सारंग समाज खाप कबधौ खुजे है आनि, ध्यान दलजोर जीतूं सेना मोह उरीकी। एकल बिहारी जथा जातलिंगयारी कर, होऊ इच्छाचारी बस्तिहारी हो या परीकी ।' ___ आत्मोन्मुखी :- भूधरदास का आन्तरिक व्यक्तित्व सांसारिकता से परे आत्मोन्मुखी है। वे आत्महित के प्रति पूर्णतया जागरूक एवं सावधान है; इसीलिए रोग और मृत्यु के आने के पहले ही आत्महित (आत्मानुभव) करना चाहते हैं। उनका कथन है - जौलौ देह तेरी काहू रोग सो न घेरी, जौलौ जरा नाहिं नेरी जासौ पराधीन परि है। जौलौ जमनामा बैरी देय न दमामा जौलौं, मानै कान रामा बुद्धि जाय न बिगरि है ।। तौलों मित्र मेरे निज कारज संवार ले रे, पौरुष थकेंगे फेर पीछे कहा करि है। अहो आग आयै जब झोपरी जरन लागै, कुआ के खुदाय सब कौन काज सरि है।' 1. जैनशतक पद्य 17 2. पार्श्वपुराण, पूघरदास पृष्ठ 30 तथा 64 3. (क) पावपुराण, भूधरदास पृष्ठ 18 अथवा बजनाभि चक्रवर्ती की वैराग्य भावना (ख) पावपुराण, भूघरदास पृष्ठ 63 4. जैनशतक, भूधरदास, पद्य 17 5. जैनशतक, भूधरदास, पद्य 26
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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