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________________ 126 महाकवि भूधरदास : नैतिक एवं सदाचारी :- भूधरदास नीतिवान एवं सदाचारी पुरुष थे । उन्होंने अपने जीवन में नीति और सदाचार को अति महत्त्व दिया। उनके साहित्य में अनेक स्थानों पर नीतियुप जन मिलता है। या आयु हीन नर को यथा, औषधि लगै न लेश। त्यों ही रागी पुरुष प्रति, वृथा धर्म उपदेश ॥' “यों सुख निवौ बांधव दोय, निज निज टेव न टारे कोय । वक्र चाल विषधर नहिं तजै, हंस वक्रता भूल न भजै ।। 2 "खल से मिले कहा सुख होय, विषधर भेटे लाभ न कोय।* 3 "दुर्जन और शलेषमा, ये समान जगमाहिं। ज्यों ज्यों मधुरे दीजिये, त्यों त्यों कोप कराहिं ॥"* "जैसी करनी आचरै, तैसो ही फल होय। इन्द्रायन की बैलि कै, आंब न लागै कोय ॥5 यथा हंस के वंश को, चाल न सिखवै कोय। स्यों कुलीन नर नारि के, सहज नमन गुण होय ॥ "दुर्जन दूखित संत को, सरल सुभाव न आय। दर्पण की छवि छार सों, अधिकहि उज्जल थाय ।। सज्जन टरै न टेव सों, जो दुर्जन दुख देय। चन्दन कटत कुठार मुख, अवशि सुवास करेय।।। सदाचारी व्यक्ति के रूप में भूधरदास सप्तव्यसन के त्यागी, अष्टमूल गुणों के धारी,” गृहस्थ के षट् आवश्यक पालने वाले 10 जैन श्रावक थे। वे अन्याय, अनीति एवं अभक्ष्य के सर्वथा त्यागी थे। वे गृहस्थ होकर भी वनवासी 1, पार्श्वपुराण, भूघरदास पृष्ठ 6 2. पार्श्वपुराण, भूधरदास पृष्ठ 5 3, पार्वपुराण, भ्रूघरदास पृष्ठ 7 4. पावपुराण, भूधरदास पृष्ठ 8 5. पार्श्वपुराण, भूधरदास पृष्ठ 8 6 . पार्श्वपुराण, भूधरदास पृष्ठ 26 7, पार्श्वपुराण, भूधरदास पृष्ठ 7-8 8. जैनशतक, पद्य 50 से 63 तक 9. मधु, मांस, मघु एवं पाँच उदुम्बर फलों का त्याग 10. जैनशतक पद्य 48
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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