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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 109 - - - -- - देश की राजनीति में परिवर्तन हुआ। केन्द्रीय शासन किसी एक सबल शक्ति के अधीन नहीं रहा । शाहजहाँ के बाद केन्द्र से किसी प्रकार का प्रोत्साहन न पाकर हिन्दी ने स्वतन्त्र राजदरबारों में शरण ली और उनके राजकार्यों में व्यवहृत हुई । केन्द्रीय स्तर पर भी उर्दू मिश्रित हिन्दी का व्यवहार हुआ।' तत्कालीन श्रृंगारिक भावों और विचारों के अनुसार भाषा और शैली में भी यथेष्ट परिवर्तन हुए; इसीलिए उस युग के साहित्य में अलंकारों एवं अन्य बाह्य उपादानों की चमक दमक और भरमार दिखाई देती है। जो रचनाएँ श्रृंगारिकता से ओतप्रोत होकर भाषा, शैली, छन्दों, अलंकारों आदि से चमत्कृत होती हुई अभिव्यक्त हुई हैं, वे "रीतिबद्ध कविता" के नाम से जानी गई। दूसरी ओर इन सबसे उन्मुक्त कविता "रीतिमुक्त कविता के नाम से अभिहित हुई। इस काव्य परम्परा द्वारा करूणा, प्रेम, नीति आदि के अतिरिक्त आध्यात्मिक कल्याणकारी विचारों की अभिव्यंजना हई। आलोच्य कवि भूधरदास एक ओर तो इस परम्परा के निकट दिखाई देते हैं तो दसरी ओर सन्त काव्य परम्परा के। परन्त वास्तव में वे जैन श्रमण परम्परा के कवि है, जिसका अभी तक हिन्दी काव्य परम्परा में कोई स्थान नहीं माना जाता है। रीतिमक्त काव्यपरम्परा तथा सन्त काव्यपरम्परा जनसाधारण के द्वारा अपेक्षाकृत अधिक आदत हुई। वास्तविकता यह है कि यदि यह परम्परा जन्म न लेती तो हिन्दी का साहित्य भाव और भाषा की दृष्टि से बड़ा दरिद्र और जनकल्याण की दृष्टि से बड़ा असमर्थ सिद्ध होता । महाकवि भूधरदास ने उक्त विषम परिस्थितियों में बड़े मनोयोग से सत्साहित्य का सृजन कर लोकोपकारी कार्य किया। उनके द्वारा रचित साहित्य हिन्दी जैन साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इस तरह कुल मिलाकर आलोच्यकाल में राजनीतिक, सामाजिक आर्थिक, धार्मिक, एवं साहित्यिक परिस्थितियाँ सन्तोषप्रद व उत्साहवर्द्धक नहीं थीं। तत्कालीन राजनीति में अस्थिरता, समाज में रूढ़िवादिता, आर्थिक जीवन में विषमता, धर्म के क्षेत्र में विभिन्न मत मतान्तर, साहित्य के क्षेत्र में श्रृंगारिकता आदि सभी अपनी चरम सीमा पर दिखाई देते हैं। कहीं कहीं धर्म, दर्शन, अध्यात्म, भक्ति एवं मानवीय मूल्यों की ज्योति टिमटिमाती हुई दीख पड़ती है, जिसका प्रतिनिधित्व समस्त सन्त साहित्य एवं जैन साहित्य करता है। इसके प्रमाणस्वरूप सन्तकाव्य के सन्दर्भ में भूधरदास के काव्य का मूल्यांकन यथास्थान किया जायेगा। - 1. इण्डिया थू द एजिज- सर जदुनाथ सरकार पृष्ठ 51 कलकत्ता 1950
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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