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________________ महाकवि भूधरदास "पांस की ग्रंथि कुच कंचन कलश कहे कहे मुख चन्द्र जो सलेषमा को घर । हाड़ के दर्शन आहि हीरा मोती कहे ताहि मांस के आर ओठ कहे विम्बफरूहे ॥ हाड़ बंध भुजा कहे कैल नाल काम जुधा, हांड ही की शंभा जंघा कहे रंभातरूहै । यों ही झूठी जुगति बनावे और कहावे कवि एते ये कहें हमें शारदा का व" ॥" भूधरदास भी श्रृंगारिक कवियों के वचनों को असत्यता बतलाकर वस्तुस्थिति स्पष्ट करते हैं : 108 2 3 कंचन कुम्भन की उपमा कह देत उरोजन को कवि बारे । ऊपर श्याम विलोकत कै, मनि नीलम की ढकनी कि छारै ।। यो सत बैन कहैं न कुपंडित, जे जुग आमिषपिंड उघारे । साधन झार दई मुंह छार, भये इहि हेत किधौं कुच कारे ॥ इसी प्रकार जब रीतिकाल के वृद्ध कवि भी अपने सफेद बालों को देखकर खेद व्यक्त कर रहे थे और "रसिक प्रिया" जैसे श्रृंगार काव्य का निर्माण कर रहे थे, तब जैन कवि तथा अन्य सन्त कवि उन्हें संबोधित कर रहे थे। साथ ही धार्मिक, आध्यात्मिक एवं मानवहितवर्धक साहित्य का निर्माण कर रहे थे। शासन द्वारा समाज की प्रत्येक स्थिति प्रभावित हुआ करती है । इस दृष्टि से भाषा भी महत्त्वपूर्ण है। राजकीय भाषा सामाजिक दृष्टि से अत्ति महत्त्वपूर्ण होती है। मुगल शासन में भारत की शासकीय भाषा फारसी रही और 16 वीं शताब्दी से ही उसे विधिवत् सरकारी भाषा घोषित कर दिया गया ।" परिणामस्वरूप उसकी सर्वांगीण उन्नति हुई। सम्राट औरंगजेब के पश्चात् 4 5 7 1. नाटक समयसार बनारसीदास अन्तिम प्रशस्ति छन्द 18 2. जैनशतक भूधरदास पद्य 65 3. " केशव केशन असकरी जस अरि हू न कराहिं । चन्द्रवदन मृगलोचनी, बाबा कहि कहि जाहिं || 4. बड़ी नीति लघु नीति करत है, बाम सरत बढ़बोय भरी । फोड़ा आदि फुन गुनी मंडित, सकल देह मनु रोग दरी ॥ शोणित हाड़मांस मय मूरत, ता पर रीझत घरी घरी । ऐसी नारि निरखकर केशव, रसिकप्रिया तुम कहा करी ॥ (ब्रह्मविलास भैया भगवतीदास पृष्ठ 184) 5. सुन्दर ग्रन्थावली द्वितीय खण्ड 437-440 तथा प्रथम खण्ड भूमिका 98-106 6. हिन्दी साहित्य, द्वितीय भाग, सं. डॉ. धीरेन्द्र वर्मा पृष्ठ 59 कलकत्ता 1950 7. भारत का बृहद् इतिहास, प्रो. श्रीनेत्र पाण्डे पृष्ठ 815 -816
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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