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________________ महाकवि भूधरदास : हिन्दुओं में विवाह एक पवित्र संस्कार माना गया है। जिसका उद्देश्य पुत्र प्राप्त कर मोक्ष प्राप्त करना है; परन्तु मुसलमानों की बहुविवाह प्रथा और तलाक प्रावधान ने स्त्री को उपभोग और आनन्द का साधन मात्र बना दिया। मध्ययुगीन समाज में स्त्री अपनी स्वतन्त्रता और अधिकार खोकर बन्धन और भय से पराभूत थी ! तर उपभोग पलं मनोरंजन की वस्तु मानी जाती थी। उसका घर की चहारदीवारी के बाहर सार्वजनिक जीवन में कोई स्थान नहीं था । पर्दाप्रथा कठोर थी। भूधरकालीन समाज अन्धविश्वासों से युक्त था । जादू-टोना तथा भाग्यवाद पर अत्यधिक विश्वास किया जाता था। इस समय साधारण व्यक्ति से लेकर सम्राट तक सभी का ध्यान अपने पुरुषार्थ की अपेक्षा परकीय विपन्न दैवीय शक्तियों पर अधिक गया । हिन्दू और मुसलमान-दोनों ही ज्योतिष विद्या एवं भविष्यवाणी पर विश्वास रखते थे। 'फलित ज्योतिष में हिन्दू मुसलमान दोनों का ही समान रूप से विश्वास था। विजय यात्रा को प्रस्थान करते हुए या कोई नया कार्य करते हुए लोग शकुन का विचार करते थे । पीरों, फकीरों, साधु-सन्तों में हिन्दू मुसलमान दोनों का ही विश्वास था । प्रत्येक वर्ग के लोग अन्धविश्वास में डूबे हुए थे। संक्षेप में इस युग (मध्ययुग) को भारतीय इतिहास में अत्यन्त अन्धकार का युग निरूपित किया जा सकता था। तत्कालीन समाज की स्थिति बड़ी शोचनीय थीं। समाज अन्धविश्वास, धार्मिक पंथवादिता, निरक्षरता, गरीबी, असुरक्षा एवं घोर अज्ञान से पीड़ित थी। समाज में मनोविनोद हेतु सुरासुन्दरी का प्रयोग अर्थात् मद्यपान एवं वेश्यासेवन की प्रवृत्ति, निरीह पशुओं का आखेट, द्यूतकर्म (जुआ) एवं चौर्यवृत्ति आदि का बोलबाला था। पारस्परिक वैमनस्य, साम्प्रदायिक कट्टरता, जातिप्रथा, ऊँच - नीच का भेद, छुआछूत, अन्धविश्वास, विलासिता आदि का भूत मुगल सम्राटों के साथ-साथ तत्युगीन समाज के सिर पर भी नाच रहा था। इन सामाजिक परिस्थितियों में कतिपय जैनधर्मावलम्बियों ने तत्कालीन समाज को न केवल उचित मार्गदर्शन दिया; अपित अपनी रचनाओं और सद्पदेशों के माध्यम से मानवीय आदर्शों की प्रतिष्ठा करके उन्हें अपनाने पर सर्वाधिक बल दिया। इस संबंध में आचार्य परशुराम चतुर्वेदी का निम्नलिखित कथन अति माननीय है - 1, भारतीय संस्कृति का विकास-- लूनिया पृष्ठ 374 2. हिन्दी साहित्य की भूमिका - डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी पृष्ठ 126
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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