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एक समालोचनात्मक अध्ययन
"ऐसे ही समय जैनधर्मावलम्बियों में कुछ व्यक्ति अपने समय के पाखण्ड और दुर्नीति की आलोचना करने की ओर अग्रसर हुए और उन्होंने अपनी रचनाओं और सदुपदेशों द्वारा सच्चे आदर्शों को सच्चे हृदय के साथ अपनाने की शिक्षा देना आरम्भ किया | उनका प्रधान उद्देश्य धार्मिक समाज में क्रमशः घुस पड़ी अनेक बुराइयों की ओर सर्वसाधारण का ध्यान आकृष्ट कर उन्हें दूर करने के लिए उद्यत करना था।"
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• इस कड़ी में भूधरदास ने तत्कालीन सामाजिक जीवन में व्याप्त मद्यपान, चोरी, जुआ 1, आखेट, वेश्यासेवन, परस्त्रीगमन, मांसभक्षण आदि सभी दुष्प्रवृत्तियों के दोष बताकर उन्हें छोड़ने की प्रेरणा दी तथा तत्कालीन समाज में दुराचार के स्थान पर सदाचार की स्थापना की। कवि ने जैनदर्शन के सिद्धांतों द्वारा संसार के बन्धन से छुटकारा दिलाकर मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया तथा जैनधर्म की व्यावहारिक शिक्षाओं द्वारा धर्माचरण का पाठ पढ़ाया। गृहस्थ जीवन में धर्माचरण हेतु देवपूजा, गुरु-उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप और दान -इन षट्कर्मों का महत्त्व प्रतिपादित किया तथा अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य अपरिग्रह आदि व्रतों 10 का आचरण करने का उपदेश दिया।
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मुगलकाल का प्रमुख व्यवसाय कृषि था । अधिकांश कृषक खेती पर ही निर्भर रहते थे। विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई जाती थीं । कृषि के औजार पुराने ढंग के थे। कुँओं और तालाबों से खेती की जाती थी । भारत अनेक प्रकार की खाद्य वस्तुओं का निर्यात भी करता था। पशु पालन भी लोगों का व्यवसाय था । जंगल और चरागाह भी पर्याप्त मात्रा में थे। कृषकों पर करों का भारी बोझ था। कृषकों में अधिकांश हिन्दू ही थे, अतः उन्हें जजिया कर, चारागाह कर, पशु कर आदि देने पड़ते थे। कृषक राज्य को भूमिकर भी देते थे। जो कभी-कभी कुल उपज का 50% तक होता था । भूमिकर अनेक व्यक्तियों के बीच बँटता था। सरकारी खजाने और कृषकों के बीच
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1. उत्तरी भारत की सन्त परम्परा, परशुराम चतुर्वेदी पृष्ठ 47
2. जैन शतक भूषरदास छन्द 53
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5. वही छन्द 55
6.
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वही छन्द 56
वही छन्द 54
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4. वही छन्द 51
7. वहीं छन्द 57 से 60
8. वही छन्द 52
10. पार्श्वपुराण अधिकार 9 पृष्ठ 87 12. सभ्यता की कहानी : मध्यकालीन विश्व अर्जुनदेव पृष्ठ 137
वही छन्द 48
11. अभिनवं इतिहास दीनानाथ शर्मा पृष्ठ 119