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महाकवि भूधरदास : है । इस दिशा में अब तक जो भी कार्य हुआ हैउसमें इस शोध-प्रबंध का भी महत्वपूर्ण स्थान होगा।
डॉ. नरेन्द्रकुमार जैन शास्त्री स्वयं अध्यात्मरुचि सम्पन्न अध्ययनशील विद्वान एवं धुन के धनी, दृढ़ संकल्पी व्यक्ति है। इस अवसर पर उनके दृष्य संकल्प को उजागर करने वाली एक घटना का उल्लेख करना मुझे आवश्यक प्रतीत होता है।
बी. ए. करने के बाद वे व्यवसाय में लग गए थे, किन्तु जब उन्हें पता चला कि पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर में जैन विद्या के अध्ययन का एक महाविद्यालय आरम्भ हुआ है तो व्यवसाय छोड़कर उसमें प्रवेश के लिए आ गए। जब वे आये, तब सभी स्थान भर चुके थे और वे पचास प्रतिशत से कम अंक लेकर पास हुए थे ; अत: उनका प्रवेश सम्भव न हुआ। ऐसी स्थिति में भी वे यहाँ डटे ही रहे और कहने लगे कि जब पुरुषार्थ करने पर आत्मा को पाया जा सकता है तो फिर यहाँ प्रवेश कैसे नहीं होगा?
उनके संकल्प को देखकर करीब एक माह बाद उन्हें इस शर्त के साथ प्रवेश दिया गया कि यदि वे पचास प्रतिशत से अधिक अंक पाकर पास न हुए तो उन्हें पूरे वर्ष का सम्पूर्ण खर्च देना होगा और अगले वर्ष प्रवेश से वंचित रहेंगे। फलस्वरूप उन्होंने इतना श्रम किया कि हमें उनसे यह कहना पड़ा कि आप चिन्ता न करें, इतना श्रम न करें कि स्वास्थ्य गड़बड़ा जाए। अन्तत: वे सर्वाधिक अंकों से उत्तीर्ण हुए । हमारे पास चार वर्ष रहे और सदा सर्वाधिक अंक प्राप्त करते रहे।
उन्होंने इस कृति के निर्माण में भी अथक् श्रम किया है। उन्होंने इसमें न केवल अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है; अपितु महाकवि भूधरदासजी व्यक्तित्व और कर्तृत्व को भी भली-भांति उजागर किया है। मैं उनके सुन्दरतम भविष्य की मंगल कामना करता हूँ और शुभाशीष देता हूँ कि वे न केवल साहित्यजगत में सक्रिय रहें; अपितु आत्मकल्याण के मार्ग में भी आगे बढ़े, शुद्धात्मा का अनुभव कर अतीन्द्रिय आनन्द एवं आत्मिक शान्ति प्राप्त करें ।