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________________ एक समालोचनात्मक अध्ययन 8. सन्तों की उस परम्परा में जिसका प्रवर्तन कबीर ने किया था, शतश: कवि आविर्भूत हुए; परन्तु वे सब सच्चे अर्थों में न कवि है, न उनका काव्य साहित्यिक क्षेत्र में उल्लेखनीय है। ' इस सन्दर्भ में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का कण दर्शनीय है . “इस पाता की रचनाएँ साहित्यिक नहीं हैं, फुटकर दोहों या पदों के रूप में हैं; जिनकी भाषा और शैली अधिकतर अव्यवस्थित एवं ऊँटपटांग है।" “निर्गुण काव्यधारा में विशेषत: कबीर, दादू, सुन्दरदास और हरिदास निरंजनी की साखियों एवं पदों में सशक्त अभिव्यंजना, गम्भीर रहस्यात्मक उक्तियाँ, प्रभावशाली रूपक और भाषा का स्वाभाविक प्रवाह विद्यमान है । इनके काव्य में गम्भीर अनुभूतियों की कलात्मक व्यंजना कुर्लभ नहीं है। इसी तथ्य का समर्थन डॉ. कोमलसिंह सोलंकी ने निम्नांकित शब्दों में किया है - "सभी निर्गुण सन्तों की सभी वाणियाँ काव्य की कोटि में नहीं आती, किन्तु आध्यात्मिक साधकों की सौन्दर्यमूलक शाश्वत अभिव्यक्ति को काव्य की संज्ञा से वंचित नहीं किया जा सकता ।" सन्त काव्य लौकिक काव्य शास्त्र की सुदृढ़ मर्यादा का मुखापेक्षी नहीं 10. सन्त काव्य का जो महत्त्व सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक दृष्टि से है, वह साहित्यिक दृष्टि से नहीं। सन्त साहित्य की जो लौकिक सीमाएँ व काव्यशास्त्रीय एवं भाषा वैज्ञानिक स्वीकृतियाँ हैं; उनमें इस काव्यधारा को नहीं बाँधा जा सकता; परन्तु पारमार्थिक, अलौकिक एवं दार्शनिक जगत की झांकियों को प्रस्तुत करने वाले सन्त साहित्य का अपना महत्त्व है। _. .. - 1, हिन्दी साहित्य का इतिहास सम्पादक-- डॉ, नगेन्द्र पृष्ठ 140 2 हिन्दी साहित्य का इतिहास- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पृष्ठ 140 3. हिन्दी साहित्य का इतिहास- सम्पादक डॉ. नगेन्द्र पृष्ठ 71 4. नाथपंथ और निर्गुण सन्त काव्य-डॉ. कोमलसिंह सोलंकी पृष्ठ 29 5. " इसलिए अनेक काव्य को लौकिक काव्य शास्त्र की कसौटी पर कसकर हम उसका सही मूल्यांकन नहीं कर सकते ।* सिद्ध साहित्य , डॉ. धर्मवीर भारती पृष्ठ 237
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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