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________________ 82. महाकवि भूधरदास : .3. उपर्युक्त सभी विवेचन से सन्त काव्य के साहित्यिक असाहित्यिक होने सम्बन्धी निम्नलिखित तथ्य सामने आते हैं - 1. सन्त साहित्य भावात्मक एवं अनुभूति प्रवण है । उसमें किसी शास्त्र या सिद्धान्त के प्रति आग्रह नहीं है। 2. सत्य का निरूपण, विवेचन एवं प्रचार-प्रसार ही सन्त साहित्य का मूल लक्ष्य है। इसीलिए सन्त कवियों ने काव्य-सौष्ठव एवं भाषा-परिमार्जन की ओर ध्यान नहीं दिया है। सन्त कवियों का लक्ष्य काव्य रचना नहीं था। उनकी रचनाओं में जन-जन के हित एवं उनके उद्बोधन की भावना सन्निहित है। इस दृष्टि से सन्त साहित्य धार्मिक या आध्यात्मिक तथा उपदेशप्रधान है। सन्त काव्य जन साहित्य है, जिसमें जनभावनाओं को जागृत करने के लिए परिश्रम किया गया है । इस प्रयास में सन्त कवियों को आशातीत सफलता मिली है। सन्तों की भाषा का रूप स्थिर नहीं है। सन्त पर्यटनशील थे। अतः उनकी भाषा में विविध भाषाओं एवं बोलियों का सम्मिश्रण हो गया है, परन्तु यह भाषा सरल, सहज, कृत्रिमत विहीन एवं जनसाधारण तक भावों को पहुंचाने में विशेष सहायक है । इसे ही रामचन्द्र शुक्ल "सधुक्कड़ी भाषा" कहते हैं। विविध भाषाओं और बोलियों के शब्दों के सम्मिश्रण के कारण उसमें साहित्यिकता का समावेश नहीं हो पाया 5. 6. सन्त काव्य पढ़े लिखे लोगों के द्वारा सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा गया। निर्गुण काव्यधारा के सन्त कवि सामान्यतया समाज के निम्न वर्गों में आविर्भूत हुए थे। उनके अनुयायियों ने पंथों एवं सम्प्रदायों का गठन किया। इनमें भी सामान्यत: जनता का निम्न वर्ग ही सम्मिलित हुआ। 1. हिन्दी साहित्य का इतिहास सम्पादक-डॉ.नगेन्द्र पृष्ठ 140 2. हिन्दी साहित्य का इतिहास - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल पृष्ठ 67 3. हिन्दी साहित्य का इतिहास सम्पादक- डॉ. नगेन्द्र पृष्ठ 140 4. वही पृष्ठ 140
SR No.090268
Book TitleMahakavi Bhudhardas Ek Samalochantmaka Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarendra Jain
PublisherVitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust Ajmer
Publication Year
Total Pages487
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size9 MB
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