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एक समालोचनात्मक अध्ययन अपनी तरह से प्रभावित करने का कम प्रयत्न नहीं किया। यह बात अलग है कि यदि मुस्लिम आक्रान्ताओं ने इस देश पर आक्रमण न भी किये होते तो भी सन्त काव्य की पृष्ठभूमि का यही रूप होता । 'जबकि कुछ विद्वान सन्त काव्य के प्रादुर्भाव का कारण मुस्लिम आक्रमणों को स्वीकार करते हैं। ' वस्तुत: सन्तकाव्य भारतीय चिन्तन का स्वाभाविक विकास है। उसके सृजन के लिए केवल एक राजनीतिक घटना का आश्रय ही पर्याप्त नहीं है।
सारांश के रूप में डॉ. कोमलसिंह सोलंकी का कथन मननीय है - "महजिया सिन्द की वारिश जैन मुनियों के सुधारक सम्प्रदाय, नाथयोगी सम्प्रदाय, वैष्णव आचार्य भक्त, सूफी फकीर आदि ही मूलरूप में सन्त काव्य की लोकभूमि के निर्णायक तत्व हैं। जिनमें निम्नवर्गीय समाज के अधिकारों की तीव्र ध्वनि है, वेदान्त का व्यावहारिक ज्ञान है, तन्त्रों की प्रभावपूर्ण योगधारा है और अनुभवजन्य सत्य की प्राप्ति की सहज लालसा भी।”
सन्त काव्य जन आन्दोलन था और प्रत्येक जन आन्दोलन लोकभाषा के द्वारा ही प्रभावशील होता है, इसलिए सन्तों ने अपने काव्य में लोकभाषा को ही अपनाया। “उनका लक्ष्य उन सर्वसाधारण हृदयों पर अधिकार करना था; जो जनता के प्रधान अंग थे। वे उन तक स्थानीय बोलियों के सहारे ही पहुंच सकते थे। संस्कृत और प्राकृत जो धर्मग्रन्थों तथा काव्य के लिए भी परिष्कृत भाषाएँ समझी जाती थीं, उनके सामने उपेक्षित बन गयीं।
सन्त कवि साधक है, कविता उनका कर्म नहीं है, अनुभूति ही उनके लिए प्रधान है।' कविता किसी उद्देश्य का साधन मात्र है। वे सत्य के प्रचारक थे और कविता को उन्होंने सत्य के प्रचार का एक प्रभावपूर्ण साधन मान रखा था। वे लोक प्रधानत: कवि नहीं थे। काव्य का कलात्मक सृजन उनका निश्चित उद्देश्य न था। ऐसे कवियों से उन्हें घुणा थी, जो काव्य रचना को ही अपना कर्तव्य माना करते थे। कबीर ऐसे लोगों को अवसरवादी कहते हैं।' 1. हिन्दी साहित्य, भूमिका- डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी पृष्ठ 8 2. हिन्दी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास - डॉ. रामकुमार वर्मा पृष्ठ 215 3. नाथपंथ और निर्गुण सन्त काष्य-डॉ.कोमलसिंह सोलंकी पृष्ठ 32 4. हिन्दी साहित्य में निर्गुण सम्प्रदाय - डॉ. पीताम्बरदत्त बड़थ्वाल पृष्ठ 340 5. नाथपंथ और निर्गुण सन्त काव्य-डॉ. कोमलसिंह सोलंकी पृष्ठ 27 6. वही पृष्ठ 29 7. हिन्दी साहित्य में निर्गुण सम्प्रदाय डॉ. पीताम्बरदत्त बड़प्पाल पृष्ठ 339 पर उधृत (कविजन जोगी जटाघर घले अपनी औसर सारि)