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तृतीय परिच्छेद
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२ राग-द्वेष की बात सुनकर कामदेव इस प्रकार की से भड़क उठा जैसे अग्निपर घी डालने से वह भड़क उठती है । उसने भेरी बजानेवाले अन्यायको बुलाया और कहा - अरे अन्याय, तुम शीघ्र ही अपनी भेरी बजाओ, जिससे समस्त सेना एकत्रित हो जाय ।
महाराज मकरध्वजकी बात सुनकर अन्यायने बड़े जोरसे अपनी भेरी बजायी । और भैरोका शब्द सुनते ही समस्त सेना जिनेन्द्र के ऊपर चढ़ाई करनेके लिए तैयार हो गयी । कामदेवकी सेना इस प्रकारसे तैयार हुई :
अठारह दोष, तीन गारव सात व्यसन, पाँच इन्द्रियाँ वैरिकुल के लिए यमस्वरूप तीन दण्ड नामक सुभट और तीन शल्यनामक राजा उपस्थित हो गये ।
चार आयुष्कर्म तथा पाँच यास्रव कर्म नामके राजा आ पहुँचे । मदोन्मत्त सिंहको तरह राग-द्व ेष नामके सुभट भी तैयार हो गये । गोत्र नामके अत्यन्त मानी दो राजा, एक प्रज्ञान नरेश और एक अनय महाराज भी सन्नद्ध हो गये ।
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क्रूर यमके समान दो वेदनीय नामके प्रबल राजा और पुण्यपाप के साथ असंयम नरेश भी तैयार हो गया। समस्तशत्रु संहारक पाँच अन्तराय और दो आशा नरेश भी आ पहुँचे ।
ज्ञानावरणनामक पाँच राजा तथा शुभ-अशुभ नृपतिके साथ दुर्जय दर्शन मोह भी तैयार होकर आ गया ।
अपने अधीनस्थ भत्योंके साथ नाम-कर्म नामके तिरानवे नरेश और सी जुवारियोंके संघसहित प्रमुख प्राठ कर्म- नरेश भी रोष में भरे
पहुंचे।
दर्शनावरणीयरूपी नी राजा भी उपस्थित हो गये । इन राजानोंसे कामको सेना इस प्रकार सुन्दर मालूम हुई जैसे नवग्रहोंसे मेरु सुशोभित होता है । अथ च -